Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्य-36] अने कारक जन एटले खरेखरा चोरो वगेरे क्रूर कर्मोना करवावाला जनो मुक्त यद जाय छे, आ उपरथी जेम खरा चोर लुटारा | भाषांतर पन सत्रम | जाणवा अशक्य छे तेम तेनाथी लोकोनुं क्षेम पण दुष्कर छे एम सूचव्यु. आ विषयमा इन्द्रियोज लुटारा तुल्य होवाथी तेनेज
अध्ययनर ॥५२१॥ जीतवाना छे. ३०
DE॥५२॥ एयम निसामित्ता । हेऊकारणचोइओ ॥ तओ नमिरायरिसिं । देविंदो इणमब्बवी ॥३१॥
३१मी गाथानो अर्थ १७मी गाथा प्रमाणे ___व्या०-एतन्नमिराजर्षेवनं श्रुत्वा देवेन्द्रो नमिराजर्षिप्रतीदमब्रवीत्. ॥३१॥ (आ टीकानो अर्थ अगाउ मुजब) जे के ई पत्थिवा तुझं । नो नमंति नराहिवा ॥ वेसे ते ठावइत्ताणं तओ गच्छसि खेत्तिया ॥ ३२ ॥ मुल-(नराहिया) हे नराधिप! (जे केह) जे कोर (पत्थिावा) राजाओ तुम्भ) तमने (न नमति) नमता न होय (ते) तेओने (बसे ठावरत्ताण') वश करीने (तमओ) त्यारपछी [खत्तिा ] हे क्षत्रिय! (गच्छसि) तमे जाओ. ३२
व्या०--हे क्षत्रिय! ये केचित्पार्थिवा नगराधिपतयो राजानस्तुभ्यं न नमति तान् भूपालान वश्ये स्थापयित्वा, ततो हे क्षत्रिय! त्वं गच्छ? ॥३२॥
___ अर्थ--जे केटलाक पार्थिव. नराधिपो तमने नथी नमता तेओने वशमा स्थापित करीने अर्थात् तेओने वश करी नमाबीने ते पछी हे क्षत्रिय तमे जाओ. ३२
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