Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्य पन सूत्रम्
॥ ४९८ ॥
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राया) नमिराजा (जाई) पूर्वनी जातिने (सरितु) स्मरण करीने (अणुत्तरे) सर्वोत्कृष्ट (धम्मे) चारित्र धर्मने (सह) पोतानी मेळे (बुद्ध) प्रतिबोध पाम्या, (पुत्तं) पुत्रने [रजे] राज्यपर (उविन्तु) स्थापन करीने (अभिनिक्खमई) दीक्षालेता हवा. ॥२॥ व्या०-- द्वाभ्यां गाथाभ्यां संबंधं वदति-नमिराजा पुत्रं राज्ये स्थापयित्वा अभिसमंतान्निःक्रामति, गृहवासान्निःसरति, अनगारो भवतीत्यर्थः, किं कृत्वा ? 'जाइ सरितु' जाति स्मृत्वा पूर्वभवं स्मृत्वा कथंभूतः स नमिः? भगवं भगवान् धैर्यसौभाग्यमाहात्म्ययशाज्ञानादियुक्तः, पुनः कीदृश: ? अनुत्तरे सर्वोत्कृष्टे श्रीजिनधर्मे सह संबुद्धः संबुद्ध:, इति द्वितीयगाथाया अर्थः स नमिः पूर्व देवलोके देव आसीत्, तेनेत्युक्तं 'चहऊण देवलोगाओ' देवलोकाच्च्युत्वा स नमिभूपो मनुष्यलोके मनुष्यजन्मन्युत्पन्नः, स च नमिभूप उपशांतमोहनीयः सन् पौराणिकां जाति | पूर्वजन्म देवलोकादि स्मरति अत्र वर्तमान निर्देशस्तत्कालापेक्षयोक्तः. ॥ २ ॥
स्वयं
(चइउण०) १ (जाइ सरितु० ) वे गाथावडे संबन्ध कहे छे-नमिराजा अनगार थया केवी रीते ? ते कहे छे:—
देवलोकमांथी च्युतथइने मनुष्यलोकमां उत्पन्न थया त्यां मोहनीय कर्म जेनुं उपशांत थयुं छे एवा नमिराजा पोतानी पौराणिकी=पूर्वभवनी=जाति (पूर्वजन्म) ते संभारखा लाग्या. १ जाति=पूर्वजन्म = तुं स्मरण करी, भगवान एटले धैर्य, सौभाग्य, माहात्म्य यशः, तथा ज्ञानादियुक्त = नमिराजा, अनुत्तर = सर्वोत्कृष्ट जीनधर्ममां स्वयंसंबुद्ध यह पुत्रने राज्य उपर स्थापित पोते अभिनिष्क्रामति=सर्वरीते गृहवासथी बहार नीकल्या = अनगार थया. आ नमि पूर्व देवलोकमां देव हता तेथी देवलोकधी
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करी
| च्युत थइने' एम कं. ए नमि मनुष्यमां जन्मी मोहनीय कर्म उपशांत थतां पूर्वभव-देवलोकादि स्मरे छे, आ गाथामां स्मरति ए
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भाषांतर
अध्ययन९
॥ ४९८ ॥

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