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। अथ चतुर्दशस्तरंग:
___-जुग्गेहि जुग्गपासे । सो पुण जुग्गो गहिजए विहिणा ॥ संपुन्नसुहफनो जं । एवं चित्र अन्नहा इअरं ॥१॥
योग्य मनुष्योए योग्यनी पासे, अने ते पण पागे योग्य एवो धर्म विधिपूर्वक ग्रहण करवो, के जेयी ते संपूर्ण 5) सुखरूपी फळवालो थाय ने अने जो तेयी उलटी रीते ग्रहण कराय तो ते विपरीत फळवालो थाय ने ॥१॥
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