Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

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Page 339
________________ ते कन्यकुब्जनूपं प्राप्ता गुरुसंदेशादि प्राहुः, राजा उत्कंठया कणाकरलेनिःशंको गच्चन् गोदावरीतीरे ग्राममेकं प्राप ॥ १५३ ॥ तत्परिसरे खंगदेवकुले रात्रिमुवास, तयूपमूढा तद्देवी तमर्थनापूर्वं बुजुजे; प्रातस्तामनापृच्छ्यैव करनारूढः श्रीगुरुपादांतिकं प्राप ॥ १५ ॥ विरहव्यंजकैः काव्यैः स्तौति स्म च; ततो गाथार्धं प्राह, 'अजवि सा सुमरिज । को नेहो एगराईए' ॥ १५५ ॥ गुरुराह-गोलानईतीरे । सुननले जंसिवीसमिओ' हृष्टो राजा शास्त्रगोष्ट्यादिनिर्दिनशेषायतिचक्राम ॥ १५६॥ श्री उपदेशरत्नाकर तेश्रोए पण कन्यकुब्जना राजा पासे जइ गुरुना संदेशा आदिक कह्यु; त्यारे राजा उत्कंचित था क्षणवारमा जंटपर बेसी निःशंकपणे जतो थको गोदावरीने किनारे एक गाममां पहोंच्यो ॥१५३॥ तेना पाद रमा रहेला एक खंमित देवमंदिरमां ते रात्रि रह्यो, त्यां तेना रूपयी मोह पामेली ते मंदिरनी देवीए मार्थना| पूर्वक तेनी साथे जोग जोगव्यो ; पछी प्रनाते तेणीने पृछया विनाज ते उटपर चीने श्रीगुरु महाराजना 12 चरणोमत्ये पहोंच्यो ॥ १५ ॥ तथा विरह देखामनारां काव्योथी तेमनी स्तुति करवा लाग्यो; पठी तेणे एक नीचे मुजब अरधी गाया कहा; 'हजुमुधि ते याद आवे ने के, अहो ! एक रात्रिमाज केवो स्नेह ॥१५॥ । त्यारे गुरुजीए क' के, 'गोदावरी नदीने कांग्रे सूना देवकूलमा विश्राम कर्यो तेटमा माटे' ; पछी राजाए खुशी थइने बाकीनो दिवस शास्त्र वार्ता प्रादिकथी संपूर्ण कों ॥ १५६ ॥ ..

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