Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan
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॥१२॥
क्रमात्तीर्थे प्राप्तः कृतसकसकृत्यश्च रात्रौ सोमेश्वरप्रासादगर्नगृहे श्रीसूरीनाकार्य स्माद ॥ २४५ ॥ हेनगवन् देवः सोमेश:, महर्षिनवान्, तत्त्वार्थी च मादृश इत्यस्मिंस्तीथे त्रिकयोगस्त्रिवेणीसंगम वाद्य जज्ञे ॥ २६ ॥ मिथो विरुषसिद्धांतवादिदर्शनैर्देवगुरुतत्त्वानिन्निन्ननिन्नतया प्रोच्यते स्म, तदद्य रागळेषौ विमुच्य प्रसद्य सम्यग्देवादितत्त्वं प्रसादय ॥ २७ ॥ ततः किंचिहिचार्योचुः श्रीगुरवः, राजन् शास्त्रसंवादेनालं, शिवं प्रत्यक्ष्यामि तव पुरः, धर्म वा दैवतं वापि। यदयं वक्ति शंकरः ॥ तपास्तिस्त्वया धेया । मृषा न खलु देवगीः ॥ २४ ॥
श्री उपदेशरत्नाकर
__ अनुक्रमे तीर्यमा पहोंच्या, तथा त्यां सघळु कार्य करीने रात्रिये सोमेश्वरना मंदिरना गंजारामां प्राचार्यजी। | महाराजने बोलावीने तेमणे कयु के ॥२४॥ हे नगवन् ! सामशदव, तमो महान् ऋषि, अने मारा सरखो तत्वनो अर्थी, एवी रीते आ तीर्थमां त्रिवेणीना संगमनी पेठे आजे त्रिकयोग थयो छे ॥ २४६ ॥ परस्पर विरुद्ध सिद्धांतोने केहेनारा दर्शनो देवगुरु संबंधि तत्वो जिन जिन रूपे कहे , माटे आजे रागोषने गेमीने तथा मारापर कृपा करीने सम्यक प्रकारे देव आदिक तत्व समजाववानी कृपा करो ॥१७॥ त्यारे श्रीगुरुमहाराजे जरा विचार करीने कयु के, हे राजन् ! शास्त्र संबंधि संवादयी तो हवे सयु, हवे तमारी आगळ हुंआ शिवनेज प्रत्यक करंब, अने.ते शंकर जे धर्म अथवा देवता कहे, तेनी तमोर सेवा करवी, केमके देववाणी मिथ्या होय नहीं ॥ २४ ॥
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