Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

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Page 397
________________ समरिबिरचिते श्रीनपदेशरत्नाकरे हितीयेऽशे 64०००.०००००००० ॥ इति श्री षष्ठस्तरंगः संमत पनी रति भी तणागच्चना स्वामी र दरमूरिजीए रचेक्षा श्री उपदेशरत्नाकरमां बीजा अंशमां एवीरीते श्री तपागच्छना स्वामी ए उहो तरंग समाप्त थयो ॥ श्रीरस्तु ॥ ब AM o समाप्त.. Hada da ga

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