Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan
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तेऽप्यवदन् राजन्नेकस्त्वमेव विवेकी जगति, यो हिंसाजुष्टं श्रौतं धर्म त्यक्त्वा दयाधर्म प्रपन्नः, अयं गुरुः सर्वदेवावतार एव, तमुक्तं तत्वमाराधयेति ॥ २४ ॥ पूर्वजा अपि वत्स त्वया जिनधर्मादरणाघ्यं सुगतिन्नाजोऽनूमः इदृशी च महर्धि मुंज्मद इत्याद्युक्त्वा तिरोदधुः ॥ २५ ॥ ततो दोलायितमना नृपः सम्यक् तत्वं श्रीगुरूनऽप्रावीत्, श्रीसूरयः प्रोचुः, राजनिंजालकराकत्रितमेवैतन्न कश्चित्परमार्थः ॥ २७६ ॥ देवबोधेरेकैवैषा, मम तु सप्त संति, तबक्त्या दर्शितमिदं, यदि न प्रत्येषि तदा वद, विश्वमपि समग्रं दर्शयामि, परं न किंचिदेतत्, तत्वं तद्यत्वां सोमेशदेवोऽवददित्यादि ॥ २७॥
तेश्रो पण कहेवा लाग्या के, हे राजन् ! तुज एक जगत्मा विवेकी गे, के जेणे हिंसाना दूषणवाळो वेदधर्म गेमीने दयाधर्म स्वीकार्यो छे, आ श्रीहेमचंद्रजीगुरु सर्व देवोना अवताररुपज , माटे तेमणे कहला तत्वोनु तुं आराधन कर ॥ ५७४ ॥ पूर्वजो पण कहेवा नाग्या के, हे वत्स ! ते जे जैन| धर्म स्वीकार्यो मे, तेथी अमो सुगतिने जजनार थया छीये, अने आवी महान् ऋद्धि अमो जोगवीये गये।
एम कहीने तेओ अलोप थया ॥ २७५ ॥ पठी मोळायला मनवाळा राजाए गुरुमहाराजने सत्य तत्व | पूज्यु, त्यारे आचार्यजी महाराजे कह्यु के, हे राजन् ! आ सघळु इंद्रजाळनी कळानुं कार्य छे, परंतु तेमा
कं पण परमार्य नथी ।। २७६ ॥ ज्यारे ते देवबोधि पासे आ एकज इंद्रजाळ कळा , त्यारे मारी पासे | तेवी सात कळाओ , अने तेनी शक्तियों में आ तने देखामयु ; जो तने तेनी खातरी न होय, तो कहे तो समस्त जगत् तने देखाउँ, परंतु ते सपळु का नयी, माटे सत्य तत्व तो तेज , के जे तने सोमेश्वरदेवे ते वखते कहेलं छे. इत्यादि । २७७ ।।
श्री उपदेशरत्नाकर
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