Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

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Page 368
________________ ॥१६॥ ततः श्रीगुरुसाहाय्यान्निस्तीर्णस्तां मिथ्यात्वापदं, दृढसम्यक्त्वो. बनूव क्रमादिति ॥ २७८ ॥ अथान्यदा नवरात्रेषु देवतार्चका नूपं व्यजिझपन् हेनरेंड कंटेश्वर्यादिकुन्नदेवीनां बबिहेतोः --- दिनेषु क्रमात् 3-6-0 शतान्यजमहिषा दीयते, नोचेद्देवता विघ्नकारियो नवंतीत्यादि ॥ २७ ॥ ततो राजा श्रीगुरुवचसा दिनत्रयं नोगादि अकुर्वन् जिनेश्वरध्यानकतानो, नवमोरात्रौ यावदास्ते, तावत्कंटेश्वरी त्रिशूलहस्ता साक्षादलूयाऽवक् ॥२०॥ राजन् एतदृत्नो अस्मद्देयं, कस्मात्वया नाऽदायि, त्वत्पूर्वजैः प्राग्दत्तमित्यादि ॥ २१ ॥ 'श्री उपदेशरत्नाकर त्यारवाद एवी रीतना श्रीगुरुमहाराजनी सहाययी ते मिथ्यात्वरुपी आपदाने तरी गयो, तथा अनु- 1 क्रमे दृढ समकती थयो ॥ २७ ॥ हवे एक दहामो नवरात्रिमा देवीपूजको राजाने विनंति करवा लाग्या । के, हे राजन् ! कंटकश्वरी आदिक कुळदेवीओना बलिदान माटे सातेम, आठेम अने नोमने दिवस अनुक्रमे | सातसो, आसो अने नवसो बकरां तथा पामाओ आपवामां आवे , अने जो तेम नहीं करो तो ते देवीअो विघ्न करशे. इत्यादि ॥ ७ ॥ ते सांजळी राजा तो श्रीगुरुमहाराजना वचनथी त्रण दिवसो सुधी नोग आदिक नहीं करीने एक श्रीजिनेश्वरमनुनाज ध्यानमा लाग्यो. परी ज्यारे नोमनी रात्री थक्ष, त्यारे हाथमां त्रिशुळवाळी कंटकेश्वरीदेवी प्रत्यक्ष थइ कहेवा लागी के ॥ २० ॥ हे राजन् ! अमारं बळिदान ते केम न प्राप्यु, तारा पूर्वजोए पण प्रथम अमोने आप . इत्यादि ॥ २७१ ॥

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