Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

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Page 365
________________ मंत्रिवसा ज्ञाततत्स्वरूपाः श्रीमसूरयः क्षमापतेः सांशयिक मिथ्यात्वापदो निस्तारयितुं प्रातर्जित्तितो दूरे सप्तगब्दिकमासनमध्यास्य स्थिताः ॥ २६७ ॥ ततो देवबोधेः समः कलावान् गुरुर्न दृश्यते कोऽपि परं निजगुरौ श्रीमाचायें किंचित्कला - कौशलं संजाव्यते नवेत्यादिवदन्नृपः स्वामिन् प्रातर्देवबोध्यादिसमकं पृच्छयंते गुरव ६त्यादि मंत्रिवचसा देवबोध्यादिपरिवृतः प्रातर्गुरून्ननाम ॥१६८॥ ततोऽध्यात्मशक्त्या पंचापि मारुतान्निरुध्यासनात् किंचिडुच्चस्यव्याख्यातुमारेनिरे गुरवः ||२६|| तावता पूर्वसंकेतितः शिष्योऽधरासनमा कृषत्, ततो निराधारा एवाऽस्खलितवचनैः सार्धं प्रहरं व्याख्यां तिस्म ॥ २७० ॥ हवे मंत्रिना वचनथी राजानुं ते स्वरूप जगाया बाद श्री हेमचंद्रजी राजाने संशयवाळा मिथ्यात्वरूप दुःखयी निवर्त्तन करवाने जाते जींतथी बेटे सात गादी वाळु आसन बीळावी तेपर बेठा || २६७ || पछी राजा मंत्रिने कहेवा लाग्यो h, हे मंत्र ! देवबोधि सरखो कळावान् बीजो कोइ गुरु देखातो नयी, तोपण आपणा गुरु हेमचंद्राचार्यमा पण कंड कलाकौशल बे के नहीं ? त्यारे मंत्रिये कछु के, हे स्वामी ! प्रजाते आपणे ते माटे देवबोधिनी समक गुरुमहाराजने पूर्वी, इत्यादि मंत्रिना वचनथी राजाए देववोधि प्रादिक परिवार सहित प्रजात श्री हेमचंद्रजी महाराजने नमस्कार कर्यो ॥ २६८ ॥ त्यारे पोतानी अध्यात्मशक्तिथी पांच वायुने रोकीने, तथा आसनथी कंड़क उंचा रहीने गुरुमहाराज व्याख्यान वांचवा लाग्या || २६७ ॥ एटनामां पूर्वी संकेत करेला शिष्ये नीचेनुं आसन खेंची लीधुं, अने तेथी धाररहित गुरुमहाराजे अधर रहीने दोढ पहोर सुधी अस्खलित वचनोथी उपदेश आप्यो ।। २७० ॥ ४७ 00000000 श्री उपदेशरत्नाकर.

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