Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

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Page 350
________________ इत्यादि, तच्छुत्वा वाकूपतिः संमूखीनूयोचे, सूरिमिश्राः किमस्मत्पुरतः शृंगाररौजांगं पद्यपाठं कुरुध्वे ॥ १०२ ॥ सूरयः - युष्मद्देवाशिषः पर्वतः स्मः, यथा स च हि श्रोतुः पुरः पवनीयं; वाक्पतिः - यद्यप्येवं तथापि मुमुक्षवो वयमासन्नं निधनं ज्ञात्वा इह परमब्रह्म ध्यातुमायाताः स्मः ॥ १०६ ॥ सूरयः - किं तर्हि रुषादयो मुक्तिदाता जयंतीति मनुध्वे ? वाक्पति — एवं संभाव्यते ॥ १७ ॥ सूरयो बनाबिरे, तद्धि यो मुक्तिदानकमस्तं शृणु पठामः ॥ १०८ ॥ जं दिट्टी करुणातरंगियफुका एयस्स सोमं मुहं । यायारोपसमागरो परियरो संतोपसन्ना तणू ॥ तं मन्ने जरजम्ममच्हरणो देवाहिदेवो जिणो । देवाणां अवराण दीसइ जओ नेयं सरूवं जए॥ १ए५॥ इत्यादि हवे ते सांजळीने वाक्पति सन्मुख यह बोलवा लाग्यो के, हे सूरिमिश्रा मार। आगळ शृंगार तथा रौद्ररसवाळो पपाशा माटे करो हो । १९८५ ।। त्यारे आचार्यजी महाराजे कथं के, तमारा देवोनी मो शिष कहीये छीये के जे श्रोतानी पासे कहेवामां आवे छे; त्यारे वाक्पतिए कछु के जोके एम बे, तो मोतो - मुह बी मा मृत्यु नजदीक जाणीने अमो अहीं परम ब्रह्मनुं ध्यान धरवा माटे आव्या बीये ॥ १७६ ॥ ते सांजळी आचार्यजी महाराजे कयुं के, शुं त्यारे रुद्र आदिक देवो मुक्ति आपनारा बे, एम तमो मानो छो? त्यारे वाकपतियेधुंके, माने तो एवो संभव थाय छे ।। १०७ ॥ त्यारे आचार्यजी महाराजे कां के, मुक्ति देवामां जे देव समर्थ, मोतमने कहीये बीये ते सांजळो ॥ १७८ ॥ जेनी दृष्टि दयाना तरंगोथी प्रफुलित थयेली बे, तथा जेमनुं मुख शांत मुद्राबाळं बे, तथा जेमनो आकार पण शांततानी खाण रूप से तथा जेमनो परिवार पण सज्ज - नतावाळो ने जेमनुं शरीर पण प्रसन्नतावालुं बे एवा देवाधिदेव श्री जिनेश्वरमनुने जन्म, जरा तथा मृत्युना हरनारा हुं मां, केमके वीजा देवोमां एवं स्वरूप देखातुं नयी ॥ १०७ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर.

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