Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan
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॥१३४॥
। अथ षोडशस्तरंग:
__ अथ करंमोपमया श्रीचतुर्नगीमाह-मूत्रम्-सोवागवेसगिहवश्–रायकरमोवमा चनह गुरुणो ॥ सुअचरणाईहिं-जहुत्तरं असाराय साराय ॥ १॥
हवे करंमीयानी नपमावझे करीने चतुर्नंगी कहे जे:-मूळनो अर्थः-चामान, वेश्या, गृहपति तया राजाना 4 करंमीयानी नपमावाळा श्रत तया चारित्र आदिके करीने उत्तरोत्तर सारविनाना तथा सारवाळा एम चार प्रकारना: गुरुप्रो होय ॥१॥
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