Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

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Page 265
________________ व्याख्या-श्वपाकादीनां करंभैरुपमा येषां ते चतुर्धा गुरवो नवंति, श्रुतचरणादिनिरसदन्तिः सन्निः सातिशयैश्च हेतुनूतैर्ययोत्तर असारा: साराश्चेति नंगध्येन चतुर्नगीसूचनादसारतमा असाराः, साराः सारतमाश्च नवंतीत्युक्तिसंटंकः ॥२॥ तत्र श्रुतमहत्प्रणीतागमः, चरणं पंचमहावतादि ; तथा चागमः-वय (५) समणधम्म (१०) संयम (१७)। वेत्रावञ्चं (१०) च बंनगुत्तिओ (ए.) ॥ नाणाइतिगं (३) तव (१२) । कोहनिग्गहा (४) चरण मेअं ॥ ३ ॥ आदिशब्दात्करणादिग्रहः, श्रीसूरिविशेषगुणातिशयत्रब्धिप्रभृतिग्रहश्च, तत्र करणं पिंमविशुष्ट्यादि, यदागमः ॥४॥ ... व्याख्या-चांमान्न आदिकोना करंमायाओनी ने उपमा जेओने एवा चार प्रकारना गुरुओ होय जे; अस्तां तया उतां अने अतिशयोवाळा हेतुरूप एवा श्रुतकान तया चारित्र आदिकोवमे करीने नचरोत्तर सारविनाना तया सारवाळा एम बेनांगाग्रोवमे करीने चोनंगीना सूचनयी वधारे सारविनाना तथा सारविनाना 8 अने सारवाळा तया वधारे सारवाला गुरुको, होय छे, एवो संबंध में ॥॥ त्यां श्रुत एटले श्रीअरिहंत प्रजु ए प्ररूपेद्यं आगम, तया चारित्र एटले पंचमहावतो, दश प्रकारनो श्रमणधर्म, सत्तर नेदे संयम, दश प्रकारनुं वैया2 वच्च, नव ब्रह्मचर्यनी गुप्तिओ, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, बार नेदे तप, तया क्रोध आदिक चार कषायोनो निग्रह ए चरण सित्तेरी रूप चारित्र ॥३॥ आदि शब्द यकी करण आदिकने पण ग्रहण करवा; तेमज आश्चर्य संबंधि विशेष | गुणो अतिशयो तया सब्धि आदिकोनो पण संग्रह करवो तेमां करण एटट्ने पिंमविशुद्धि आदिक; आगममा पण कयुं छे के-॥४॥ श्री उपदेशरत्नाकर

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