Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

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Page 274
________________ ॥१३Muslil इति चिनीयो जंगः ॥ केचिच्च तृतीयरत्नवदंतःसाराः, वात्मोपकारकपरत्वात् ; बहिस्त्वसाराः, आत्मार्थ कनिष्टत्वेन परेषां शिष्यगच्चश्राबादीनां तप्तिपरिहारादिनाऽनुपकारित्वात् ॥ १५ ॥ यथा श्रीआर्यमहागिरिसूरयः, ते हि श्रीआर्यसुदस्तिन्यो गच्चं दत्वा तदा जिनकल्पम्य व्यवच्छेदाजिनकल्पाहवृत्त्या गनिधास्था व्यहार्षः ॥१६॥अन्यदा श्रीसुहस्तिसूरयो विदरंतः पाटलीपुत्रपत्तनमाजग्मुः, तत्र सुनृतिः श्रेष्टी श्रीगुरुवचनात् प्रतिबुधः श्राछोऽनृत् ॥ १७ ॥ श्रीगुरूक्तधर्मानुवादेन वजनान् बोधयति, परं ते नाऽबुध्यताल्पमेधसः ततस्तत्प्रतिवोधायाहूताः श्रीसुहस्तिगुरवस्तगृहमापुः, देशनां प्रारेजिरे ॥ १८ ॥ पनीरीने बीजो नांगो जाणवी ।। कळी केटनाक गुरुश्री श्रीजा मननी फेरे अंदरथी सारवाळा होय जे, केमके नेओ फक्त पोताना नपकारमा तत्पर होय छे; परंतु तेश्रो बहारथी सारविनाना होय जे, केमके तेश्रो फक्त स्वार्थमाज तत्पर होवाची शिष्योनां तया गरछ्यासी श्रावक आदिक अन्योना दुःखने दूर करवारूप उपकार करी शकता नयी ॥ १५ ॥ जेम श्रीआयमहागिरि आचार्य तेश्रो श्रीआयमुहम्ति महाराज प्रत्ये गच्च सोपीने ते वरखते जिनकल्पीपणानो विच्छेद ययेस्रो हावाथी जिनकल्पी जैवी वृत्तिर्य करीन गच्चनी निश्रामा रह्या थका विहार करवा बान्या ।। १६ । एक वखते श्रीआयमुहस्ति महाराज विहार करता थका पाटलीपुत्र नगरमा पधार्थाः स्यां मुनूनि नामनी पक शेठ श्रीगुरु महाराजना वचनथी प्रतिबोध पामीने श्रावक थयो ॥१७॥ तथा श्रीगुरु महाराजे कहेला धर्मना अनुवाद करीने स्वजनाने नपंदश देवा माग्यो; परंतु तेश्रो थोमी बुष्विाळा होवाथी प्रतिबोध पाम्या नहीं; नेथी नेमने प्रतिबोधवा माटे तोणे श्रीआयमुहस्ति महाराजने बोलाववायी गुरुमहाराज नेने घेर पधायों; नया देशना देवा लाग्या ।। १७॥ श्री उपदेशरत्नाकर.

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