Book Title: Updesh Ratnakar
Author(s): Lalan Niketan
Publisher: Lalan Niketan

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Page 285
________________ 0000०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००606 प्रत्यहं श्रीत्रिभुवनपाल विहारे स्नात्रोत्सवः, श्रीहेमचंजसूरिगुरुपादपमेषु घादशाव. वंदनकदानं, ततोऽनुक्रमेण सर्वसाधुवंदनं ॥ ७ ॥ पूर्वप्रतिपन्नपौषधादिवताह श्रावकवंदनमानदानादि, अष्टादशदेशेष्वमारिपटहदापन, न्यायघंटावादनं, चतुर्दशदेशेषु पुनर्धनबलेन मैत्रीबलेन च जीवरक्षाकारणं ॥ १७ ॥ चतुश्चत्वारिंशदधिकचतुःशतनव्यप्रासादकारणं, १६०० जीर्णोधाराः, सप्त श्रीतीर्थयात्राः, प्रथमव्रतेमारिरित्यदरकथने उपवासकरणं ॥ एए॥ द्वितीयव्रते विस्मृत्याद्यसत्यनाषणे - चाम्लादितपःकरणं, तृतीयव्रते मृतधनमोचनं, चतुर्थवते धर्मप्राप्त्यनंतर. पाणिग्रहणा करणं, चतुर्मास्यां त्रिधा मनोवचनकायैः शीतपालनं ॥ ६० ॥ श्री उपदेशरत्नाकर ___ हमेशा श्रीत्रिजुवनपाल विहारमा स्नात्रोत्सव कराव्यो, श्रीहेमचंद्राचार्यना चरण कमलोमा धादशावर्त वंदन | कर्यु, पछी अनुक्रमे सर्व साधुओने वंदन कर्यु ॥ ५७ ॥ पेहेलेंथी पौषध आदिवत लेनार योग्य श्रावकने. वंदन तयार कमान आदक प्राप्युं, अढार देशोमां अमारी पमो वजमाव्यो, न्याय घंटा वगमाव्यो, वळी चौद देशोमा धनने बळे | तथा मित्राने बळे जीवरक्षा करावी, ॥५७ ॥ चारसो चुमालीस नवां जिनमंदिरो कराव्यां, सोळसो जीर्णोधार all कराव्या, सात तीर्थयात्रा करी; पेहेला व्रतमा 'मारि' अवो जो अक्षर मुखथी बोलाय तो पण उपवास करता एए ॥ बीजा व्रतमां नूल आदिकी असत्य बोलता आवेन आदि तप करता, त्रीजा व्रतमा मृत्यु पामेलानु द्रव्य नहीं लेता, चोथा व्रतमा धर्म पाम्या पठी परणवानें नियम कयु, चोमासामा मन, वचन अने काया, एम त्रण प्रकारे शोम पाळता ॥ १० ॥ ७

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