Book Title: Upang Prakirnak Sutra Vishaykram
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha

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Page 66
________________ सूर्य०।२३ औ०१९ रा० २० जी०२१ प्रज्ञा०२२ ॥६४॥ शचं०/२४ जं० २५ प्रकी०२७ सणपाणकासमुद्दग० सण्णी f० पुच्छा सत्तगदुगदुगपंचग सप्सट्ठ जाइकुलकोडि० सत्तण्हं थोवाणं सत्तपाणूई से थोवे सत्त पाणूणि से थोवे सत्त भए अट्ठ मंए . | सत्तभयविप्पमुक्को २२-२४ सत्थग्गाहणं विसभकखणं २७-१०८ समयखेत्ते णं भंते! २२-२५१सू० | सत्येण सुतिक्खेणवि समय नक्षत्ता जोगं २५-१०३ | सद्दहगा पत्तियगा २७-१२५१ । समयं वक्ताणं २२-११२ | सहे रुवे गंधे रसे २७-१२८२ २७-१९५८ |, '... 'सब्वेसु कसाएसु २७-१४०९ समासीस परिच्छिणं |सद्धाधितिउट्टाणुच्छाह - २४-२९ समाहारा सुप्पइण्णा २७-५०६ | सन्नासु आसबेसु अ २७-१४३१ समिईसु पंचसमिभो २७-९२ | सन्निहिए सामाणे २७-९९९ समुइण्णवेयणो पुण २७-१४९८ सफाए सज्झाए २७-२०७ सभाए सुधम्माए । २१-१४०सू० | समुदण्णेसु य सुविहिय: २७-४८५ सभाए णं सुहम्पाए २०--३९सू० २७-४४७ समगं णक्खत्ता जोयं | सम्मग्गमग्गसंपट्टियाणं २७-११६९ समणिद्धयाए बंधो सम्मत्तनाणदंसणवर २७-४६४ | समणेण सावपण य २७-१८०६ सम्मत्तस्साहिगमे २५-८२ | समणोत्ति अहं पढमं २७--१२५ | सम्मत्तं समिइओ २७-११४५ | समणोमित्ति य , सम्मइंसणचत्तं २७-११३५ । समणोऽहं ति य ,, २७--२५३२ । सम्मइंसणरत्ता : २१-१७८सू० २५-८५ २२-२६सू० २२-९९ २७-८३६ २५-७३ २७-२४३० २७-१५३८ २७-२५४ २७-१७१९ २७-१७८७ २७-७४४ २७-६०६ २२--२२५ २७-१५०१ २७-१३२५ २७-१०४ सत्तमी य पवंचा उ सत्तरिसयं जिणाण व सत्तावीसं जोयणसयाई सत्ताहं कललं होइ सत्तेव य कोडिसया । ,, ,, कोडीओ सत्तेव सहस्साई ॥६४॥

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