Book Title: Upang Prakirnak Sutra Vishaykram
Author(s): Sagaranandsuri, Anandsagarsuri
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha
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औ०१९
रा०
चं०/२४
जी० २१| प्रज्ञा०२२|
२२-२०२ सूर्य०/२३ २७-२४२८ २७-३०८० २५ २२-२५३ नि० २६ २७-१८७८
प्रकी०२७ २७-१८३१
सव्वे रसे पणीए २७-१४१० संगहो(हु वग्गहविहिणा सब्वेवि य संबंधा २७-३६७ | संगं परिजाणामि सब्वे सव्वद्धाए
२७-१७७३ सव्वेसु य दब्बेसु य
संगो महाभयं जं सव्वोवि किसलओ खलु
संघयणधिईजुत्तो ससिसमगपुण्णमासिं .
संघयणं संठाणं ससिसमगपुन्निमासिं
२४-२६ संघो सइंदयाणं ससिवी दुगोत्तफुसिया २२-३४ संजएणं० संजतेति सहसक्कारमणाभोगओ २७-१३५१ संजयअसंजयमीसगा संकुइअवलीचम्मो २७-४८६ | संजोगमूला जीवेणं संखंक० अज्जुणसुवण्णय० २७-१२०६ संखंकसन्निकासा
२७-११९६ | संज्झागयंमि कलहो २७-११९३ | संज्झागयं रविगयं
२७-११९९ , राहुगयं संखिजजोयणा खलु २७-११६५ संडिय मंतिय होत्तिय संखेवेण मए सोम्म २७-७४९ | संठाणं अद्द पुस्सो संगनिमित्तं मारइ २७-४०७ | संठाणं च पमाणं
२७-७२४ | संठाणं वाहल्लं २७-१५०२ संतोवसंतधिइम २७-२१० संथारयपब्वजं पब्बजइ २७-४०८ संनिहिया सामाणा २७-१७६० संपत्ते बलविरिण २७-४९७ | संबंधिबंधवत्ते २७-७०५
। , बंधवेसु २२-२४४सू० संभरसु सुअण ! जंतं
२२-२२२ संलेहणा य दुविहा २७-१५० संवच्छरस्स सुंदरि!
संविग्गा भीयपरिसा य २७-८६४ संसारचकवालंमि २७-८६९ | संसारचकवाले २७-८६६
२२-३७ | संसारबंधणाणि य २५-१०१ | संसारमूलवीयं २५-१२२ । संसाररंगमज्झे
२७-४३३ २७-१४११ २७-१९५६ २७-८३७ २७-११२ २७-१४८२
RSEMEN
२७-१२६५ २७-३३४ २७-२६२
॥६६॥

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