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बहुत ही अच्छे ढंग से वणित है। उन्होंने इस जीवन का आदर किया। यहां तक कि हमारे सभी तीर्थंकरों के चिह्न एवं केवल-ज्ञान स्थान प्राणियों एवं वृक्षों से संबंधित है। राजस्थान में करीब ५०० वर्ष पूर्व से स्वीकृत विश्नोई समाज के बीस एवं नौ नियमों में पशुपक्षी नहीं मारना, हरा वृक्ष नहीं काटना प्रमुख नियम हैं । “माता भूमिः पुत्रोऽहम् पृथिव्या"..-पृथिवी हमारी माता है एवं हम सब उसके पुत्र हैं । इस बात पर जोर देना होगा। ___इसलिये अब हमको जैन जीवन पद्धति अपनाकर प्रदूषित पर्यावरण को रोकने का संकल्प करना होगा। इस धर्म को जीवन से जोड़ना चाहिए । अगर हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली संतान इस पृथ्वी पर आये एवं सम्पूर्ण सुखमय जीवन जीये तो अब हमें प्रकृति संरक्षक जैन धर्म के "सिद्धांतों पर जीना आरम्भ करना होगा।" तभी हम भोगवादी सभ्यता के वशीभूत होकर अपनी संतानों के हत्यारे बनने से बच सकेंगे। 'जीओ और जीने दो' एवं 'अहिंसा परमो धर्म:' के सिद्धांतों को व्यवहार में लायें। अहिंसा एक व्रत है । यह सुख शांति का दूसरा नाम है।
(डॉ. सुरेश जैन) क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान एन. सी. ई. आर. टी.
अजमेर-३०५००४
खंड २९ अंक २
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