Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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रखा सुतारा।
(श्लोक १४६-४७) अभिनन्दिता का जीव भी सौधर्म कल्प से च्यवकर त्रिपृष्ठ और स्वयंप्रभा के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। माँ ने स्वप्न में लक्ष्मी का स्नानाभिषेक देखा था । अतः माता-पिता ने इसका नाम श्री विजय रखा।
(श्लोक १४८-१४९) स्वयं प्रभा के द्वितीय पुत्र होने पर विजय और सौभाग्य के निकेतन रूप उसका नाम रखा विजयभद्र। (श्लोक १५०)
शिखिनन्दिता के जीव ने प्रथम स्वर्ग से च्युत होकर त्रिपृष्ठ और स्वयंप्रभा की कन्या के रूप में जन्म ग्रहण किया। नाम हुआ ज्योतिप्रभा।
(श्लोक १५१) कपिल ने जो कि पूर्व जन्म में सत्यभामा का पति था दीर्घकाल तक तिर्यक योनियों में भ्रमण कर चमरचंचा नगरी में विद्याधरराज अशनिघोष के रूप में जन्म ग्रहण किया। (श्लोक १५२-१५३)
अर्ककीर्ति ने अपनी आँखों की तारा जैसी कन्या सूतारा का विवाह त्रिपृष्ठ-पुत्र श्रीविजय के साथ कर दिया । त्रिपृष्ठ ने अपनी सुश्री कन्या ज्योतिप्रभा का विवाह अर्ककीति के पुत्र अमिततेज के साथ कर दिया। श्रीविजय सुतारा और दीर्घवाह अमिततेज ज्योतिप्रभा के साथ यौवन सुख भोग करते हुए दिन व्यतीत करने
(श्लोक १५४-५६) एक दिन रथनुपुर चक्रवाल नगरी के बाहर सौन्दर्य में सोमनस जैसा जो विस्तृत उद्यान था उसी उद्यान में अभिनन्दन, जगनन्दन और ज्वलनजटि सम्यक ज्ञानादि त्रिरत्नों की भाँति आकर अवस्थित हुए। जब अर्ककीति को ज्ञात हुआ कि उसके पिता अपने दोनों गुरुओं सहित उद्यान में आए हैं तो वे वहां पहुंचे और उन्हें वन्दना की । जहाँ आग्रह होता है वहाँ देरी को अवकाश कहाँ ?
(श्लोक १५७-५९) मुनि अभिनन्दन ने मोह रूपी जमी हई तुषार को गलाने में समर्थ सूर्य सदश प्रवचन दिया। उस प्रवचन को सुनकर अर्ककीर्ति के मन में संसार से वैराग्य उत्पन्न हो गया। उन्होंने करबद्ध होकर मुनि से निवेदन किया, 'भगवन् , पुत्र अमिततेज को सिंहासन पर बैठाकर जब तक मैं यहाँ दीक्षा ग्रहण करने न आऊँ तब तक आप लोग यहीं अवस्थित रहें।' उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा, 'वत्स, शुभ
लगे।