Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 15
________________ प्रथम परिच्छेद: श्रुतशकार्य इस परिच्छेद में श्रुतधराचार्यों का परिचय निबद्ध है | श्रुतघराचार्यसे लेखकका अभिप्राय उन आचार्यों से है, जिन्होंने सिद्धान्त-साहित्य, कर्म-साहित्य, अध्यात्म-साहित्यका ग्रथन किया है और जो युग-स्थापक एवं युगान्तरकारी हैं । इन आचार्यों में गुणघर, धरसेन, पुष्ादन्त, भूतबलि यतिवृषभ, उच्चारणाचार्य, आर्यमक्षु, नागहस्ति, कुन्दकुन्द, वप्पदेव और गृद्धपिच्छाचार्य अभिप्रेत हैं। आरम्भ में आचार्यका स्वरूप, आचार्यका महावोरके वाङ्मय के साथ सम्बन्ध, श्रुतका वर्ण्य विषय, उसके भेद प्रभेद एवं उनका सामान्य परिचय अति है | श्रुतके धारक आचार्यों की परम्परामें आद्य आचार्य गुणधर और घरसेनके व्यक्तित्व, समय-निर्धारण एवं वैदुष्प्रपर प्रकाश डालते हुए गुणधराचार्य द्वारा रचित 'कसायपाहुड' का तथा वरसेनाचार्य के साक्षाच्छिष्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि और उनके 'षट्खण्डागम' का विस्तृत परिचय दिया गया है। आर्यमंक्षु, नागहस्ति, वज्र, वज्रयश, चिरन्तनाचार्य, यतिवृषभ, उच्चारणाचार्य और कुन्दकुन्दाचार्य के व्यक्तित्व, कृतित्व और समय-निर्णय आदि पर विशेष विचार करते हुए कुन्दकुन्दके उपलब्ध ग्रन्थोंका विशद परिचय दिया गया है । परिच्छेदके अन्त में शिवायं स्वामिकुमार और आचार्य गृद्धपिच्छ तथा इनकी रचनाओं का परिशीलन निबद्ध है । द्वितीय परिच्छेद: सारस्वताचार्थं इसमें श्रुतवराचार्य और सारस्वताचार्य की भेदक रेखाओंका अङ्कन करते हुए स्वामी समन्तभद्र, सिद्धसेन, देवनन्दि-पूज्यपाद, पात्रकेसरी (पात्रस्वामी), जोइंदु, विमलसूरि, ऋषिपुत्र मानतुङ्ग, रविषेण, जटासिंहनन्दि, एलाचार्य, अकलनदेव, वीरसेन, जिनसेन द्वितीय, अमितगति प्रथम, अमितगति द्वितीय, अमृतचन्द्रसूरि नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती, नरेन्द्रसेन, नेमिचन्द्र मुनि, श्रीदत्त, कुमारसेन, यशोभद्र, वच्चसूरि, शान्तिषेण, श्रीपाल, काणभिक्षु और कनकनन्दिका जीवनवृत्त, गुरुपरम्परा, समय-निर्णय और रचनाओंका विशद परिचय अति है । इसी परिच्छेद में सिहनन्दि, सुमति, कुमारनन्दि, विद्यानन्द आदि आचार्योंका भी परिचय ग्रथित है । इन्हें लेखकने सारस्वताचार्यों में परिगणित किया है । सारस्वताचार्य से लेखकका तात्पर्य उन आचार्यों से है, जिन्होंने प्राप्त हुई श्रुतपरम्पराका मौलिक ग्रन्थ-प्रणयन और टीका - साहित्य द्वारा प्रचार एवं प्रगार किया है । इस प्रकार इस खण्ड में श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्य वर्णित हैं । उनके द्वारा रचित वाङ्मय भी विवेचित है । आमुख : १९

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