Book Title: Tirthankar Bhagwan Mahavira Author(s): Virendra Prasad Jain Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission View full book textPage 7
________________ दो शब्द प्रस्तुत रचना महाकाव्य है अथवा खण्डकाव्य है या क्या ? -इस ओर मेरा कतई लक्ष्य नहीं है और न इससे न मुझे कुछ सरोकार ही है । यह जो कुछ भो है मेरे प्राराध्य के प्रति मेरा हार्दिक भक्तिभावयुक्त श्रदाध्य है। ___ तीर्थकर गुणानुवाद बड़ा ही विशद् है तथा वर्णनातीत होता है । कवि भूधर' कहते हैं। "जिन गुन कथन प्रगम विस्तार, बुषि बल कोन लहे कवि पार ?' इसी बात का प्रतिपादन कवि मनरंगलाल जी के निम्न दोहे में भो देखिए:'इन्द्र के गणषर थके, पर मजगेश थकन्त । जश बरनत जिनवर तनो, नर किम पार लहन?' भक्त हरजसराय का भी यही मत है :'भी जिन.जग में को ऐसो दुधिवन्त जू, . .जो तुम पुण वर्णन कर पावै अन्त जू।' ... अब जिन गुण-गान की बात यह तब सर्वाङ्ग तीपंकर-. जीवन को प्रकट करना सम्भव कहां? साक्षात् केवसी भगवाब उसको अनुभूति में ले पाते हैं, परन्तु वे उसको मुख से वर्णन करने में समर्थ नहीं होते। अपने प्रतिद्धन्दी धर्म-नेता भ. बुद्ध से प्रशंसित, इतिहास प्रसिद्ध राजा श्रेणिक और विम्बसारद्वारा पूषित नर-अमरचन्द तीर्षकर अगवान महावीर के विषय में भी जैनाचार्य का मत पठि प्रतिबयोति मनकार युक्त हैPage Navigation
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