Book Title: Tirthankar Bhagwan Mahavira
Author(s): Virendra Prasad Jain
Publisher: Akhil Vishwa Jain Mission

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Page 5
________________ जैन साहित्यकारों ने भारतीय साहित्य के सभी मङ्गों को अपनी मूल्यमयी रचनामों द्वारा समलंकत किया है। तामिल, कन्नड, अपभ्रंश मादि भाषामों के मादि साहित्य निर्माता निस्संदेह जन साहित्यकार ही है । संस्कृत भाषा में 'चतुर्विशति संघान' सहश प्रभुत चमत्कार रचनामो को भी जनों में रख है । हिन्दी भाषा साहित्य के मादिकाल में जैनों ने ही अपनी रचनामों से उसको मूल्यमई बनाया है। प्रब भी जैन समाज ने साहित्य जगत का बैरिस्टर चम्पतराय जी जैन, श्री अनेन ब प्रभूति उल्लेखनीय लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रदान किये हैं। किंतु इतना होते हुये भी एक बात जो खटकती है वह यह है कि जनों की पुरातन साहित्य परम्परा का पहले जैसा समुज्वल और प्रभावक रूप अब देखने को नहीं मिलता। जैन कथाबार्ता को लेकर माधुनिक शेनी में रचनामों का प्रायः प्रभाव ही है। उस पर जैन महापुरुषों के पादर्श जीवन और बोषप्रद शिक्षामों की परिवायत्मक नई रचनायें तो मिलती ही नहीं। माज हिंदी भाषा को भारत की राष्ट्र भाषा होने का गौरव प्राप्त है और उनमें एक दो प्रर्जन साहित्यकारों ने बैन धर्म के अन्तिम तीर्थकर भ० महावीर के पवित्र जीवन को काव्य पड करने का सद्प्रयास भी किया । परन्तु जैन सिदान्त पोर न साहित्य का गम्भीर मोर गहन परिचय न होने के कारण उसका ठीक निवाह वह न कर सके । इस परिस्थिति में अखिल विश्व बैन मिशन ने इस प्रकार के साहित्य के सूजन की पावश्यकता का अनुभव.करके हियो भाषा में 'माधुनिक जैन काव्य अन्धमाला' बामक नई शैली को पुस्तकमाला का प्रारम्भ किया है, जिसमें

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