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दीपिका नियुक्तिश्च अ०१
नवतत्त्वनिरूपणम् २९ - पृथिवीकायिकाः-आदिना-ऽप्कायिकाः तेजस्कायिकाः वायुकायिकाः वनस्पतिकायिकाः इत्येवं पञ्चविधाः स्थावरा जीवाः सन्ति । किन्तु-देशान्तरप्राप्तिलक्षणगतिक्रियामाश्रित्य तेजवायु (तेजोवायु) कायिकास्त्रसा उच्यन्ते ।सू० ॥९॥ - नियुक्ति:--अथ पूर्वोक्तस्थावरान् प्रतिपादयितुमाह-“एगिंदिया पुढवीकाइयाए पंचथावरा" इति । एकेन्द्रियाः एकं स्पर्शनरूपमिन्द्रियं येषां ते एकेन्द्रियाः पृथिवीकायिकादयः । पृथिवीकायिकाः-१ अप्कायिकाः-२ तेजस्कायिकाः-३ वायुकायिकाः-४ वनस्पतिकायिकाः-५ पञ्चसंख्यकाः स्थावरा व्यपदिश्यन्ते । तथाचोक्तम्-स्थानाङ्गे-५ स्थाने–१ उद्देशके ३९४ सूत्रे पंच थावरा काया पण्णत्तातं जहा पुढवीथावरकाए, आउथावरकाए, तेउथावरकाए, वाउथावरकाए,वणस्सईथावरकाए"-इति । पञ्चस्थावराःकायाः प्रज्ञप्ताः-तद्यथा-पृथिवीस्थावरकाया १ अप्स्थावरकायाः-२ तेजः स्थावरकायाः-३ वायुस्थावरकायाः-४ वनस्पतिस्थावरकायाः ५॥सू०९॥
मूलसूत्रम्-"तसा अणेगविहा, अंडयाइया" छाया-"असा अनेकविधाः अण्डजादयः"
दीपिका–सामान्यतः पूर्वोक्तानां त्रसानां संसारिजीवानां विशेषस्वरूपाणि-भेदांश्च प्रतिपादयितुमाह____ "तशु अणेगविहा, अण्डयाइया"-इति । त्रसाः-त्रसनामकर्मोदयवशवर्त्तिनो जीवा द्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-पञ्चेन्द्रियाद्ययोगिकेवलिपर्यन्ता अनेकविधाः नानाप्रकारका भवन्ति । है । ये पाँच प्रकार के स्थावर जीव हैं। किन्तु देशान्तर प्राप्तिरूप गतिक्रिया की अपेक्षा तेजस्कायिक और वायुकायिक भी त्रस कहलाते हैं ॥९॥
तत्त्वार्थ नियुक्ति-अब पूर्वोक्त स्थावरों का प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं। एक स्पशनेन्द्रिय वाले जीव स्थावर कहलाते हैं । पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक,
और वनस्पतिकायिक पांच स्थावर हैं । स्थानांगसूत्र के पाँचवें स्थान के प्रथम उद्देशक के ३९४ वें सूत्र में कहा है
स्थावरकाय पाँच कहे गये हैं-(१) पृथिवीस्थावर काय (२) अपस्थावरकाय (३) तेजस्थावरकाय (४) वायुस्थावरकाय और (५) वनस्पतिस्थावरकाय ॥९॥
सूत्रार्थे–'तसा अणेगविहा' इत्यादि । त्रसजीव, अंडज आदि के भेद से अनेक प्रकार के हैं ॥१०॥
तत्त्वार्थ दीपिका- पहले सामान्य रूप से कहे गए त्रसजीवों का विशेष स्वरूप और भेदबतलाने के लिए कहते हैं
सनामकर्म के उदय के वशीभूत द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय आदि अयोगिकेवली पर्यन्त अनेक प्रकार के होते हैं। वे इस प्रकार हैं-अण्डज, जरायुज, रसज, संस्वेदज,