Book Title: Tao Upnishad Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 14
________________ ताओ उपनिषद भाग ४ कोई आस्था नहीं है। उनकी आस्था तो समर्पण में है। वे तो नहीं मानते कि किसी से उनका कोई विरोध है। इसलिए उन्होंने तो कोई संघर्ष नहीं किया। फिर भी वे जीवित रहे। लेकिन माओत्से तुंग ने उनकी सारी व्यवस्था को आमूल तोड़ डाला है। माओत्से तुंग कनफ्यूशियस से सहमत है। और अगर हम ठीक से समझें तो कम्युनिज्म कनफ्यूशियस से सहमत होगा ही। कनफ्यूशियस कहता है कि समाज के हाथ में नियंत्रण चाहिए। और लाओत्से कहता है व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्र है, किसी के हाथ में उसका नियंत्रण नहीं। कनफ्यूशियस से जो धारा चलती थी वह माओत्से तुंग में आकर पूरी हो गई। और माओत्से तुंग के हाथ में पूरी ताकत है। तो आज, जहां हजारों आश्रम थे लाओत्से के, वहां एक भी आश्रम खोजना मुश्किल है। एकाध-दो आश्रम बचा कर रखे हैं, म्यूजियम की तरह, जो अतिथियों को दिखाए जाते हैं। लाओत्से को मानने वाले संन्यासियों पर मुकदमे चले हैं; अदालतों में उनको घसीटा गया है; मारा-पीटा गया है, हत्या की गई है। स्वभावतः, माओत्से तुंग की दृष्टि से लाओत्से के अनुयायी तो सुस्त और काहिल हैं। क्योंकि लाओत्से कहता है, करने में हमारा कोई भरोसा नहीं है, हमारा न करने में भरोसा है। लाओत्से कहता है, करने से क्षुद्र ही पाया जा सकता है, केवल न करने से विराट की उपलब्धि होती है-अकर्म, कर्म नहीं। क्योंकि कर्म से आदमी क्या पा सकेगा? और कर्म से आदमी जो भी पाएगा, वह संसार का होगा। अकर्म में आदमी डूबता है अपने में; कर्म से जाता है संसार में। और जब कोई कुछ भी नहीं करता तब उसके भीतर उसकी जीवन-चेतना अपनी पूरी सुगंध से खिलती है। तो लाओत्से कहता है, अकर्म है जीवन का सिद्धांत। स्वभावतः, उसके संन्यासी माओत्से तुंग की भाषा में तो शोषक हैं, मुफ्तखोर हैं; वे कुछ करते नहीं। कर्म तो जरूरी है। इसलिए भी मैंने लाओत्से पर विचार कर लेना जरूरी समझा। क्योंकि यह हो सकता है कि आने वाले दिनों में लाओत्से का एक भी संन्यासी खोजना मुश्किल हो जाए। और चीन का कम्युनिज्म का हमला भयंकर है। न केवल चीन से, बल्कि तिब्बत से भी सारी संभावनाओं को विनाश करने की चेष्टा चीन ने की है। तिब्बत में भी लाओत्से और बुद्ध को मान कर चलने वाला एक वर्ग था।' शायद पृथ्वी पर अपने तरह का अकेला ही मुल्क था तिब्बत, जिसको हम कह सकते हैं कि पूरा का पूरा देश एक आश्रम था; जहां धर्म मूल था, बाकी सब चीजें गौण थीं; जहां हर चार आदमियों के बीच में एक संन्यासी था और ऐसा कोई घर नहीं था जिसमें संन्यासियों की लंबी परंपरा न हो। जिस बाप के चार बेटे होते वह एक बेटे को तो निश्चित ही संन्यास की तरफ भेजता। क्योंकि वही परम था। लेकिन चीन ने तिब्बत को भी अपने हाथ में ले लिया है। और तिब्बत में भी संन्यास की गहन परंपराएं बुरी तरह तोड़ डाली गई हैं। कोई संभावना नहीं दिखती कि तिब्बत बच सकेगा। दलाई लामा तिब्बत से जब हटे तो चीन की पूरी कोशिश थी कि दलाई लामा तिब्बत से हट न पाएं। उन्नीस सौ उनसठ में, जो लोग भी धर्म के गुह्य रहस्य से परिचित हैं, उन सबके लिए एक ही खयाल था कि दलाई लामा किसी तरह तिब्बत से बाहर आ जाएं और उनके साथ तिब्बत के बहुमूल्य ग्रंथ और तिब्बत के कुछ अनूठे साधक और संन्यासी भी तिब्बत के बाहर आ जाएं। लेकिन बाहर आ सकेंगे, यह असंभावना थी। कोई चमत्कार हो जाए तो ही बाहर आने का उपाय था। क्योंकि दलाई लामा के पास कोई आधुनिक साज-सामान नहीं; कोई फौज, कोई बम, कोई हवाई जहाज, कोई सुरक्षा का बड़ा उपाय नहीं। और चीन ने पूरे तिब्बत पर कब्जा कर लिया है। दलाई लामा का तिब्बत से निकल आना बड़ी अनूठी घटना है। क्योंकि हजारों सैनिक पूरे हिमालय में सब रास्तों पर खड़े थे। और कोई सौ हवाई जहाज पूरे हिमालय पर नीची उड़ान भर रहे थे कि कहीं भी दलाई लामा का काफिला तिब्बत से बाहर न निकल जाए। लेकिन एक चमत्कार हुआ।

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