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द्रव्य की समझी जाती थी परन्तु साधारण खर्च की पूर्ति के लिए श्रीसंघ ने विचार करके एक प्रस्ताव किया कि मूल २ 11 ) रु. आवें वे सदा की भांति देवद्रव्य में ले जाये जावें और २ || ) रु. जो अधिक आवें वे साधारण खाते की आमदनी में ले जाये जावें । उक्त ठहराव शास्त्र के आधार से ठीक है या नहीं, इस विषय में आपका अभिप्राय बतलाने की कृपा करियेगा । श्री सूरत, भरुच, बड़ौदा, खम्भात, अहमदाबाद, महेसाणा, पाटण, चाणस्मा, भावनगर आदि श्रीसंघ स्वप्नों की बोली की आय का किस किस प्रकार उपयोग करते हैं, वह आपके ध्यान में हो तो बताने की कृपा करें ।'
शान्ताक्र ुझ श्रीसंघ की तरफ से लिखे गये पत्रों के उत्तर रूप में पू. पाद सुविहित शासन मान्य आचार्य भगवन्तों की तरफ से जो जो प्रत्युत्तर श्रीसंघ के प्रमुख सुश्रावक जमनादास मोरारजी जे. पी. को प्राप्त हुए, वे सब पत्र यहां प्रकाशित किये जा रहे हैं । उन पर से स्पष्ट रूप से प्रतीत होगा कि स्वप्नों की आय में वृद्धि करके प्राप्त की गई रकम भी साधारण खाते में नहीं ले जाई जा सकती है।' इस प्रकार सचोट एवं दृढ़ता के साथ पू. पाद शासनमान्य आचार्य भगवन्तों ने फरमाया है । ऐसी स्थिति में जो वर्ग सारो स्वप्न-द्रव्य की आय को साधारण खाते में ले जाने की हिमायत कर रहा है, वह वर्ग शास्त्रीय सुविहित मान्य परम्परा से कितना दूर सुदूर जाकर, श्री वीतरागदेव की आज्ञा के आराधक कल्याणकामी अनेक आत्माओं का अहित करने की पापप्रवृत्ति को अपना रहा है, यह प्रत्येक सुज्ञ आराधक आत्मा स्वयं विचार कर सकता है ।'
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य