Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 138
________________ करके बता दिया है कि "यह उचित नहीं लगता' यह बहुत ही समुचित है। देवद्रव्य के विषय में उपयोगी कई बातें बारबार यहाँ इसीलिये कहनी पड़ रही हैं कि, 'सुज्ञ वाचकवर्ग के ध्यान में यह बात एकदम स्पष्ट रीति से दृढ़ता के साथ आ जावे कि देवद्रव्य की रक्षा के लिए तथा उसके भक्षण का दोष न लग जावे इसके लिए 'सेनप्रश्न' जैसे ग्रन्थ में कितना भार दिया गया है । अभी कई स्थानों पर गुरुपूजन का द्रव्य वैयावच्च में ले जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है । परन्तु सही तौर पर गुरुपूजन का द्रव्य देवद्रव्य ही गिना जाता है । इस बात की स्पष्टता करना यहाँ प्रासंगिक मानकर उस सम्बन्ध में पु. पाद जगद्गुरु तपागच्छाधिपति आचार्य म. श्री होरसूरीश्वरजी म. श्री को पूछे गये प्रश्नों के उत्तर रूप 'हीर प्रश्न' नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ में से प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे है -: ' हीर प्रश्न के तीसरे प्रकाश में पू. पं. नागर्षिगणि के तीन प्रश्न इस प्रकार हैं- ( १ ) गुरु पूजा सम्बन्धी स्वर्ण आदि द्रव्य गुरुद्रव्य कहा जाय या नहीं ? ( २ ) पहले इस प्रकार की गुरुपूजा का विधान था या नहीं ? ( ३ ) इस द्रव्य का उपयोग किसमें किया जाय ? यह बताने की कृपा करें । उक्त प्रश्नों का उत्तर देते हुए पू. आ. म. जगदगुरु विजय हीरसूरीश्वरजी म. श्री फरमाते हैं कि 'गुरु पूजा संबंधी द्रव्य स्वनिश्राकृत न होने से गुरुद्रव्य नहीं होता जबकि रजोहरण आदि स्वनिश्राकृत होने से गुरुद्रव्य कहे जाते हैं । 128 ] [ स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य

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