Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 148
________________ सह गृहस्थी छुटेखाई भाईयो ईडन हेपाहव्यनी ५-५ वृद्धि तराई सक्षराखेको परंतु तेथी दांत खेच षिधी योक्यनीती, खलु धनु होय ते तरई ध्यान ध्यानी खास यायदि हता छ वास्तं हाखाना साधारण खातानी घूम તરવું ફરવાની ખાસ ૩૨૭ . તેથી पाछे नेथलेने पुण्य हस्ती दखल या हरेक प्रसं शुभ यात आवश्य रहम डढिया दुखा क्या तक्धीन दरकी तेही या जानु नातू यह कहो, रजने तेवी धूम हि पर। नाधर्श नहि भर श्रच्छ Suryork

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