Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 128
________________ होने में आपकी शोभा नहीं है । अतः अब भी आप सब एकमत होकर परम तारक आप्त आगम से सम्मत हो सकें ऐसी एक शुभाभिलाषा है । (वि. सं. २०२२ आ. व. ५) ( उक्त सब लेखों पर से यह बात स्पष्ट है कि, स्वप्न की उपज की तरह उपधान की माला की उपज तथा अन्य भी देवद्रव्य की उपज प्रभु-भक्ति के निमित्त जो कोई बोली बोली जाय उस देवद्रव्य का उपयोग जिनमन्दिर के जीर्णोद्धार आदि प्रभु की भक्ति के कार्य में किया जाय परन्तु अपने कर्तव्य के रूप में प्रभु की पूजा की सामग्री केसर आदि में या पूजा करने के लिए रखे पुजारी को वेतन देने में उस देवद्रव्य का उपयोग न हो, यह खास रूप से ध्यान रखना आवश्यक है। श्रावक संघ का कर्तव्य श्री जिनपूजा है। उस कर्तव्य का पालन अपनी पूर्वपुण्य से प्राप्त सुन्दर सामग्री से प्रभु पूजा करनी चाहिये; देवद्रव्य की उपज में से सामग्री लाकर नहीं। तथा दूसरों की सामग्री से भी नहीं । जिन पूजा रूप श्रावक कर्तव्य तो लक्ष्मी की मूर्छा उतारकर श्रावक धर्म की आराधना के लिए है, नहीं कि लक्ष्मी की ममता को पंपाल कर उसकी मूर्छा बढ़ाने के लिए। इस प्रसंग पर पू. पाद परमशासन प्रभावक व्याख्यान वाचस्पति परम गुरुदेव आचार्य म. श्रीमद् विजयरामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजश्री ने पालीताणा की श्री सिद्धक्षेत्र की पुण्य पवित्र भूमि पर इस सम्बन्ध में प्रेरक एवं वेधक वाणी में जो सचोट मार्गदर्शन स्पष्ट रूप से दिया है वह बहुत ही मननीय और चतुर्विध संघ के लिए उपकारक होने से यहाँ उद्धत किया जा रहा है जिसे सब कोई विवेकपूर्वक वांचे विचारें, ऐसी अपेक्षा अवश्य रखी जाती है। ] 118 ] [ स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य

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