Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 127
________________ धर्म प्रसारक सभा, भावनगर तरफ से ढुंढक हित शिक्षा अपर 'नाम गप्पदीपिका समीर' नाम से प्रकाशित हुई है उसके प्रश्न नं. ९ में स्पष्ट समझाया है। इसलिए पू. स्व. आ. श्री विजयानन्दसूरि तथा पू. आ. श्री वल्लभसूरिजी महाराज ने आपके संघ को स्वप्नों की उपज में से चार आनी, छह आनी या दस आनी साधारण में ले जाने की सम्मति दी है, यह बात कोई भी बुद्धिमान इस युग में नहीं मान सकता । तथापि कोई आचार्य स्वप्न की उपज को साधारण में ले जाने से सम्मत हए हो, ऐसा कोई प्रमाण आप बतावें तो उस पर विचार किया जा सकता है। वि. किसी भी समय, किसी भी क्षेत्र में शासन की कोई भी व्यवस्था कदाचित् द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव के अनुसार यदि संशोधित, परिवर्तित या परिवद्धित करनी पड़े तो वह कौन कर सकता है ? ऐसा परिवर्तन आचार्य भगवन्तों के प्रधानत्व में श्री संघ आचार्यदि की सम्मति से शास्त्र को बाधा न पहुंचाते हुए ही कर सकता है । इस प्रसंग पर पं. धी कनकविजयजी गणिवर ने तो शासन की निष्ठा को बहुत ही सुन्दरता के साथ निभाया है और सत्यमार्ग का रक्षण भी बहुत अच्छी तरह से किया है । अब स्वप्न की उपज को देवद्रव्य में ले जाने के लिए आपके वहाँ के सूश्रावकों को सम्मत हो जाना चाहिए । यही आपके लिए हितावह है और शासन की उन्नति तथा सिद्धान्त का रक्षण करने के लिए मिथ्या परम्परा के पाप से बचने का यही एक सन्मार्ग है। वर्तमान में कोई भी आचार्य भगवन्त आदि स्वप्न की बोली साधारण में ले जाने की सम्मति देते नहीं, भूतकाल में किसी आचार्य भगवन्त ने ऐसी सम्मति दी भी नहीं । अतः आज्ञा प्रधान सैद्धान्तिक मार्ग में किसी भी प्रकार के कदाग्रह के वश स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [ 117

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