Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 135
________________ देवद्रव्य से बंधवाये गये मकान, दुकान या चाली में श्रावक कैसे रह सकते हैं ? निःशूकता दोष लगने के साथ ही, उसके भक्षण का, अल्पभाड़ा देकर या विलम्ब से भाड़ा देकर उसके विनाश के दोष की बहुत सम्भावना रहती है । 'सेनप्रश्न' में स्पष्ट बताया। है कि 'साधु भी यदि देवद्रव्य के रक्षण का उपदेश न करें या उसकी उपेक्षा करे तो भवभ्रमण बढ़ता है।' इसीलिये पू. पाद आचार्यादि श्रमण भगवन्त 'स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ही है' उसका विनाश होता हो तो अवश्य उसका प्रतिकार करने के लिए दृढतापूर्वक उपदेश करते हैं । देवद्रव्य की रक्षा करने से तो तीर्थंकर नामकर्म के बंध का कारण बनता है अर्थात् देवद्रव्य जहां साधारण में ले जाया जाता हो वहां श्री चतुर्विध संघ को, जिनाज्ञारसिक संघ को उसका प्रतीकार करना चाहिए। यह उसका धर्म है, कर्त्तव्य हैं, वह श्री जिनेश्वर भगवन्त की आज्ञा की आराधना है, यह पू. आ म. श्री विजयसेनसूरीश्वरजी महाराजश्री के द्वारा फरमाये हुए उपर्युक्त विधान से स्पष्ट होता है । 'श्रावक अपने घर मन्दिर में प्रभुजी की भक्ति के लिए प्रभुजी के आभूषण करावे, कालान्तर में गृहस्थ कारण होने पर अपने किसी प्रसंग पर उन्हें काम में ले सकता है या नहीं ? पं. श्री विनयकुशल गणि के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए 'सेनप्रश्न' में श्री सेनसूरिजी म. श्री फरमाते हैं कि -- 'यदि देव के निमित्त ही कराये गये आभूषण हो तो अपने उपयोग में नहीं लिये जा सकते ।' ( सेनप्रश्न : प्रश्न : ३९, उल्लास : ३, स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] पेज २०२ ) [ 125

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