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आदि महापुरुष भी पर्युषण महापर्व में स्वप्न वाचन के पश्चात् स्वप्न उतारने के समय उपस्थित ही नहीं रहते थे। क्योंकि संघ के कितने ही कदाग्रह वाले भाइयों की जड़ता के कारण स्वप्नों की आय साधारण खाते में ले जाई जाती थी जिसका पू. भवभीरु सुविहित महापुरुषों ने बहुत विरोध किया । अन्ततः स्वप्न दर्शन के समय उपस्थित न रहने रूप असहकार के कारण वि. सं २०२२ में शास्त्रविहित सुविहित महापुरुषों द्वारा मान्य परिणाम सामने आया।
जैन शाला में वि. सं २०२२ के चातुर्मास में हमने अलग स्थान पर स्वप्न उतारने का निर्णय किया और उसकी आय देवद्रव्य में ही और वह भी प्रारम्भ में राधनपुर के जिनालय में जीर्णोद्धार आदि में उपयोग करना ठहराया। प्रारम्भ में सख्त विरोध के बावजूद शास्त्रानुसारी सुविहित परम्परा को शिरोधार्य करने वाले शासन प्रेमी श्री संघ की दृढ़ता के कारण वह प्रयत्न सफल रहा । अन्ततः थोड़े समय बाद समस्त राधनपुर जैन संघ ने सर्वानुमति से स्वप्न की आय को देवद्रव्य में ले जाने का निर्णय लिया।
शासनप्रेमी श्रीसंघ ने जो प्रवृत्ति दृढ़ता के साथ अडिग रहकर प्रारम्भ को, यद्यपि प्रारम्भ में बहुत विरोध का सामना करना पड़ा तथापि उसका परिणाम शास्त्रानुसारी सुविहित परम्परामान्य प्रणाली के स्वीकार के रूप में ही आया।
वि. सं. २०२२ के राधनपुर चातुर्मास में स्वप्न की आय को देवद्रव्य में ले जाने की शास्त्रीय प्रणाली का पहली बार शुभारम्भ हुआ, उस समय के वातावरण को स्पष्ट करने वाला विवरण राधनपुर निवासी श्री शासनप्रेमी ने 'कल्याण' मासिक
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य