Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 119
________________ मु. श्री वल्लभविजयजी म. के साध्वीजी के व्याख्यान संबंधी शास्त्रानुसारो विचार _ 'ढुंढक हितशिक्षा अपर नाम गप्प दीपिका समीर (ढुंढकमती आर्या पार्वती की बनाई हुई ज्ञान दीपिका-वास्तविक गप्प दोपिका खंडन) प्रगटकर्ता-श्री जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर । कीमत आठ आना । संवत् १९४८. अहमदाबाद, युनियन प्रिंटिंग प्रेस, लेखक मुनि वल्लभविजयजी। 'उक्त पुस्तक में वे कहते हैं कि' 'विदित हो कि इस हुण्डावसर्पिणी काल में बहुत सी बातें आश्चर्यकारी हो गई हैं और होती चली जाती हैं। उनमें से एक यह भी बात सुज्ञजनों के हृदय में आश्चर्यजनक है कि स्त्रियाँ भी पुरुषों की सभा में बैठकर व्याख्यान करती है और प्रश्नोत्तर रूप खण्डन-मण्डत की पुस्तकें भी रचती हैं । जैसे पार्वती नामक ढुंढणी ने ज्ञान-दीपिका नामक पुस्तक रची है । आश्चर्य तो यह है कि जैन शासन में हजारों साध्वियां हो गई हैं पर किसी साध्वी की रची हई कोई पुस्तक वाचने में और सुनने में नहीं आयी है। महावीर स्वामी की छत्तीस हजार साध्वियों ने अनेक प्रकार से तप किये हैं तथा एकादशांग शास्त्र पढ़े हैं पर किसी साध्वी ने कोई पुस्तक नहीं रची है और न पुरुषों की सभा में बैठकर धर्मोंपदेश किया है । क्योंकि श्री नन्दीजी सूत्र में ऐसा पाठ है कि जिस तीर्थंकर के शासन में जितने शिष्य चार प्रकार की बुद्धि से सहित होते हैं उस तीर्थंकर के शासन में उतने हजार या लाख प्रकीर्णक शास्त्र होते हैं परन्तु साध्वियों के रचे हुए शास्त्र का कहीं शास्त्र में वर्णन नहीं है।' स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य ] [ 109

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150