Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 124
________________ ऊपर के निर्णय के अनुसार स्वप्न की बोली की उपज देवद्रव्य गिनी जाय, ऐसा श्री मुनि सम्मेलन ने सर्वानुमति से ठहराया है। क्योंकि स्वप्न की बोली प्रभु के निमित्त से बोली जाती है। इसके सिवाय श्री मुनि सम्मेलन के द्वारा पट्टक रूप में सर्वानुमति से किये हुए निर्णयों के नीचे नौ पू. वृद्ध आचार्यदेवों के हस्ताक्षर हैं और वहाँ 'इस्वी सन् १९३४ एप्रिल मास ता. ५ गुरुवार' यह दिन बताया गया है। (२) प्रस्तुत हेण्डबिल में दूसरी बात यह लिखी है कि 'राधनपुर . में भी श्री सागरसंघ ने १९४३ भादवा सुदी १ के दिन स्वप्नों के घी को साधारण में ले जाने का सर्वानुमति से ठहराव किया है और पूज्य आत्मारामजी महाराज ने 'इस प्रस्ताव को करने में कोई गलती नहीं है और श्रीसंघ ऐसा ठहराव कर सकता हैऐसा अभिप्राय दिया है।" ऊपर की बात पू. श्री आत्मारामजी महाराज के नाम से कही गई है वह भी मिथ्या है । यह बात पू. श्री आत्मारामजी महाराज के वि. सं. १९३८ में लिखे हुए और वि. सं. १९४८ में प्रकाशित प्रश्नोत्तरों को देखने से मालूम पड़ती है। ऊपर के दोनों स्पष्टीकरणों को ध्यान में लेकर किसीकिसी स्थल पर स्वप्न की उपज को देवद्रव्य सिवाय के खाते में ले जाई जाती हों तो उसे सुधार लेने की विनति । स्वप्न की उपज को देवद्रव्य खाते ले जाने का ठहराव करके देवद्रव्य के भंग अथवा देवद्रव्य के भोग के पाप से बचने हेतु विनति है। . लि. शासनप्रेमी संघ, राधनपुर [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य

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