Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 122
________________ के अपने विचार स्वप्नद्रव्य के विषय में कितने स्पष्ट सचोट तथा सुविहित महापुरुषों की शास्त्रमान्य प्रणाली के साथ सुसंगत थे, यह सुज्ञवाचक वर्ग अधिक स्पष्टता से निःशंक रूप से समझ सके इसलिए बार-बार इस पुस्तक में पिष्ट पेषण लगे तब भी प्रस्तुत किये हैं। इससे समझा जा सकता है कि स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ही है । यह बात ठेठ पुराणकाल से चली आ रही सुविहित शास्त्रानुसारी परम्परा से मान्य है। राधनपुर जैसे कुछ गांवों में वर्षों से जो अशास्त्रीय प्रणाली न जाने किस कारण से शुरु हुई उसे शास्त्रीय तथा परम्परानुसारी के रूप में प्रचारित करने वालों की बात कितनी मिथ्या, निस्सार तथा वाहियात है, यह ऊपर के सब लेखों से तथा राधनपुर के कुछ भाइयों द्वारा प्रकाशित हेन्डबिल के जबाब में पू. सुविहित आचार्यादि श्रमणसंघ ने जो सचोट तथा स्पष्ट प्रतिकार किया है, उस पर से समझा जा सकता है। पर्वाधिराज की शास्त्रानुसारी आराधना होने के बाद वि. सं. २०२२ के वर्ष में राधनपुर के शासनप्रेमी संघ ने उस हेन्डबिल का जो उत्तर दिया वह भी प्रासंगिक होने से यहां दिया जा रहा है। राधनपुर के कुछ भाइयों के हेन्डबिल का सचोट प्रतिकार राजनगर में एकत्रित श्री मुनि सम्मेलन ने 'स्वप्न द्रव्य, देवद्रव्य गिना जाता है' ऐसा सर्वानुमति से ठहराया था। श्री आत्मारामजी महाराज का अभिप्राय भी यही था कि "स्वप्न उतारना, घी बोलना आदि धर्म की प्रभावना और जिनद्रव्य की वृद्धि का हेतु है।" - 112 ] [ स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य

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