Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 116
________________ है कि गुरुदेव की कृपा से थोड़े दिनों में आराम हो जायेगा। चिन्ता न करें। ___ श्रीमान् विद्याविजयजी महाराजश्री की तबियत पहले बहुत ही नरम हो गई थी। अभी सुधार पर है परन्तु अभी अशक्ति बहुत है जिससे शय्या पर हैं । आपका पत्र उनको मैंने बताया। उन्होंने लिखवाया है कि, आपने शान्ताकु झ संघ ने जो ठहराव किया है वह उचित है । इसमें शास्त्रीय दृष्टि से और परम्परा से किसी प्रकार का दोष या बाधा नहीं है। संघ अपनो अनुकूलता के लिए सात क्षेत्रों को सजीवन रखने के लिए अनुकूलतानुसार ठहराव कर सकता है और रिवाजों में परिवर्तन कर सकता है। इसमें किसी प्रकार की बाधा नहीं है, सो जानियेगा। धर्म कार्य में उद्यम करना। सबको धर्म लाभ कहना। . गुजरात काठियावाड के किसी किसी गाँव में तो स्वप्नों को सब उपज साधारण में ले जायो जातो है। किसो गांव में आधीआधी दोनों खातों में ले जायी जाती है। अपनी-अपनी अनुकूलता के अनुसार संघ निर्णय लेते हैं। संघ अपनी अनुकूलता से ठहराव करके तदनुसार वर्ताव करे इसमें किसी प्रकार का दोष नहीं है। यह जानियेगा। लि. जयन्त विजय [ मुनि श्री विद्याविजयजी की तरफ से लिखाये हुए इस पत्र के उत्तर में शान्ताक झ श्री संघ की तरफ से भी जबाब लिखा गया था जो आ. म. श्री विजयवल्लभसूरिजो म. के पत्र के जवाब इस पुस्तिका में प्रकाशित हुआ है। उसी भाव का उत्तर लिखा गया था। मुनि श्री विद्याविजयजी म. भी १९९० के श्रमण-सम्मेलन के समय राजनगर में थे। उस सम्मेलन के ठहराव में स्पष्ट 106 1 | स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य

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