Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 115
________________ लिखने की आवश्यकता रहती नहीं । तथापि पिछले कुछ वर्षों से स्व. पू. पाद आचार्यदेवों में केवल आ. म. श्री वि. वल्लभसूरि म. तथा आ. म. श्री वि. धर्मसूरि म. के शिष्य मुनिश्री विद्याविजयजी म.-उन दोनों के अभिप्राय शान्ताकु झ श्रीसंघ के प्रश्न के उत्तर में पूज्य सुविहित महापुरुषों की शास्त्रीय विचारधारा से अलग दिशा में रहे हैं। जब शान्ताक झ श्रीसंघ ने मुनि श्री विद्याविजयजी महाराज को पत्र लिखकर पूछा कि, 'स्वप्न की बोली के घी का भाव अभी २॥) रु. प्रतिमन है उसके बदले ५) पांच रूपया प्रतिमन करके हमेशा की तरह रु. २॥) देवद्रव्य में और २॥) रु. साधारण खर्च को निभाने के लिए साधारण खाते में ले जाने विषयक ठहराव श्रीसंघ करे तो शास्त्र आधार से अथवा परम्परा से यह उचित है या नहीं ? इस प्रश्न के उत्तर में मुनिश्री विद्याविजयजी महाराज ने शान्ताकु झ में रहने वाले एक भाई को सम्बोधित करके समस्त श्रीसंघ को उत्तर दिया है। वह इस प्रकार हैं :मु. श्री विद्याविजयजी म. का शान्ताक्रुझ संघ को उत्तर __*- श्रीमद् विजयधर्मसूरि गुरुभ्यो नमो नमः *जैन मन्दिर, रणछोड़ लाइन, करांची . ता. १४-१०-३८ श्रीयुत् महाशय,, जीवराज छगनलाल देसाई आदि संघ समस्त, मु. शान्ताक झ। .. धर्मलाभ के साथ विदित हो कि आपका पत्र मिला। पूज्यश्री विद्याविजयजी महाराजश्री को तबियत में दिन प्रतिदिन अच्छा सुधार हो रहा है । परन्तु अभी कमजोरी बहुत है । आशा स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य । [ 105

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