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सम्बन्ध में वर्तमान में विद्यमान लगभग सब आचार्य भगवन्त एक मत के हैं; उनमें कोई मान्यता भेद नहीं है ।
स्व. पू. आ. म. श्री विजयनेमिसूरि म., स्व. पू. आ. म. सागरानन्दसूरि म. आदि आचार्य भगवन्तों का भी अभिप्राय यही था कि स्वप्नों की आय देवद्रव्य में हो जावे । वि. सं. १९९० के राजनगर के श्रमण सम्मेलन में भी यही निर्णय हुआ था । तदुपरान्त पू. सागरानन्दसूरिजी महाराज ने स्वप्नद्रव्य को लेकर 'सिद्धचक्र' (पाक्षिक वर्ष १, अंक ११, पेज २५८ ) में जो स्पष्ट कहा है वह निम्न प्रश्नोत्तरी से जानना चाहिए । ]
श्री सागरजी महाराजश्री क्या फरमाते हैं ? प्रश्न २९८ - स्वप्नों की उपज और उसका घी देवद्रव्य खाते में ले जाने की शुरुआत अमुक समय पर हुई है तो उसमें परिवर्तन क्यों नहीं हो सकता ?
समाधान - अर्हत् परमात्मा की माता ने स्वप्न देखे थे अतः वस्तुतः उसकी सब उपज देवद्रव्य में ही जानी चाहिए अर्थात् देवाधिदेव के उद्देश्य से ही यह उपज है ।
ध्यान में रखना चाहिये कि च्यवन - जन्म - दीक्षा ये कल्याणक भी श्री अरिहन्त भगवान के ही हैं । इन्द्रादिकों ने भी श्री जिनेश्वर भगवान की स्तुति भी गर्भावतार से ही की है । चवदह स्वप्नों का दर्शन भी अर्हद् भगवान कूंख में आते हैं तब होता है; तीन जगत् में प्रकाश भी इन तीनों कल्याणकों में होता है । अतः धर्मिष्ठों के लिए वे गर्भावस्था से ही भगवान् है ।
उक्त सभी पू. पाद शासन स्तम्भ आचार्यदेवादि सुविहित श्रमण भगवन्तों के अभिप्रायों के सम्बन्ध में अब कुछ अधिक
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[ स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य