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इसलिए उक्त झूठ का प्रतिकार हो, यह इच्छनीय है,
ऐसा हमें लगा । सचमुच जैन शासन जयशील रहता है । इस सत्य की प्रतीति कराने वाला प्रसंग उस समय बना जबकि पाटण ( गुजरात ) सागर मच्छ के उपाश्रय में उस समय वि. सं. २०२२ के चातुमासार्थ विराजमान पू. आचार्य महाराजश्री कीर्तिसागरसूरि महाराजश्री ने राधनपुर के भाइयों के नाम से प्रकाशित झूठ से भरे पर्चे का सचोट, स्पष्ट, निर्भयतापूर्वक शास्त्रानुसारी प्रतिकार करके जैन शासन के सनातन सिद्धान्त की रक्षा के साथ शासन मान्य सुविहित परम्परानुसारी शास्त्रीय प्रणाली का प्रचार करने के द्वारा शासन प्रेमी संघ को प्रेरणा तथा मार्गदर्शन देने का एक धर्माचार्य के नाते अनुपम शासनप्रभावक कार्य किया है उसकी जितनी अनुमोदना - प्रशंसा की जाय वह कम है ।
उन्होंने राधनपुर के भाइयों के पर्चे का जो जबाब पर्चे द्वारा दिया वह इस प्रकार था :
( ४ )
असल ठहराव के नाम से फैलायी गई भ्रमणा का सचोट जवाब
प्राचार्य कीर्तिसागरसूरि आदि ठाणा ३
सागर का उपाश्रय, पाटन
राधनपुर मध्ये सुश्रावक को धर्मलाभ | यहां देवगुरु धर्म शान्ति होगो ? शान्ति हो !
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२०२२ आसोज वदी ११
रतिलाल प्रेमचन्द आदि भाइयों प्रसाद से शान्ति है। वहां भी
[ स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य