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- मेरी जानकारी में तो किसी भी समय ऐसा प्रसंग नहीं आया जब स्वप्नों के पैसों को उपाश्रय में खर्च करने की सम्मति दी हो।
. द. मुनि चतुरविजय ( ता. ७-६-१७ के पत्र में )
इसी प्रकार मुनि श्री हँसविजयजी से पालनपुर के श्रीसंघ ने आठ प्रश्न पूछे थे। उनमें से तोसरे प्रश्न में पूछा गया है किस्वप्नों के घी की आय किसमें लगाई जाय ? उत्तर में कहा गया है कि, 'इस सम्बन्धी अक्षर किसी पुस्तक में मुझे दृष्टिगोचर नहीं हए परन्तु सेन प्रश्न और हीर प्रश्न नाम के शास्त्र में उपधान माला पहिनने के घी को उपज को देवद्रव्य में गिनो है। इस शास्त्र के आधार से कह सकता हूं कि स्वप्नों की उपज को देवद्रव्य माना जाय।
। 'इस विषय में मेरे अकेले का हो ऐसा अभिप्राय है, ऐसा नहीं समझना चाहिए। पू. आचार्य श्री कमलसूरिजी तथा उपाध्याय श्री वीरविजयजो तथा प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी आदि महात्माओं का भी ऐसा ही अभिप्राय है कि स्वन्नों की आय को देवद्रव्य माना जाय।
आप आगे चलकर लिखते हो कि, 'आचार्य सर्वानुमति से निर्णय देवें तो ही ठहराव में परिवर्तन किया जा सकता है।' इस प्रकार के आपके वचनों से आप स्वयं बँध जाते हो क्योंकि आपने १९४३ के वर्ष में ठहराव किया है और आत्मारामजी म. के स्वर्गवास के पश्चात् सं. १९९० के सम्मेलन में आचार्यों ने सर्वानुमति से ठहराव किया है कि, 'प्रभु निमित्त जो जो बोली बोली जाय वह सब देवद्रव्य कहा जाता है। इससे पूर्व की मान्यताएँ,
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य