________________
(१३)
पू. चिदानन्द मुनिजी म. वापी
( पं. म. श्री चिन्दानन्द मुनिजी )
आसोज वदी १०
इस काल में बहुत से भारीकर्मा जीव वक्र और जड़ गुण के प्रताप से श्री देवद्रव्य जैसे पवित्र द्रव्य का दुरुपयोग करके शासन की आशातना का महाभयंकर पाप ले रहे हैं । शासनदेव उनको सद्बुद्धि दें। इस अवसर पर अपना कर्त्तव्य है कि शक्ति लगाकर उन्हें इस पाप से रोकें ।
(१४) पू. पंन्यासजी म. श्री भद्रंकरविजयजी म. (आ. लब्धिसूरिजी म. के) ( पू. आ. म. श्री वि. भद्रंकर सू. म. ) सोलार
आसोज वदी १०
राधनपुर के भाइयों नें मुनि सम्मेलन के नाम से स्वप्नों का घी साधारण में ले जाने का ठहराव ढूंढ निकाला है परन्तु उन ठहरावों को नकल को देखते हुए ऐसा कोई ठहराव हुआ ही नहीं है । परन्तु लोगों में प्रिय बनने के लिए राधनपुर के इन भाइयों ने मनघडन्त ठहराव कर लिया है; सो ज्ञानें ।
( १५ )
आचार्य म. श्री विजयदेवेन्द्रसूरि म.
भुज (कच्छ) आसोज वदी १०
राधनपुर का पर्चा पढ़कर हमें भी दुःख हुआ है कि राधनपुर जैसी धर्मधुरी नगरी के श्रावकों ने पू. आत्मारामजी म. सा. के नाम से पर्चे में जो लिखा है और जिस ठहराव का उल्लेख
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
[ 95