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(२२) पू. आचार्य महाराज माणिक्यसागरसूरिजो म. जामनगर (पू. सागरजी म. श्री के समुदाय के गच्छनायक) का. सु. ५
राजनगर साधु सम्मेलन के पट्टक में 'प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर चाहे जिस जगह प्रभु के निमित्त जो बोली बोली जाय वह सब देवद्रव्य कहा जाय'-इस प्रकार लेख है । पर्चे में पट्टक के नाम से जो लेख लिखा है वह मिथ्या है।
(२३)
पू. आचार्य म. जम्बूसूरिजी महाराज,
पालीताणा का. सु. ५
राधनपुर के हेण्डबिल में जो अखिल सम्मेलन के ठहराव से 'स्वप्नों की बोली का घी जिस गाँव में जिस खाते में ले जाया जाता हो वहाँ उसी प्रकार ले जाया जाय' कहा गया है, वह ठीक नहीं हैं।
राधनपुर के पर्चे में सं. १९४३ भा. सु. १ को पू. आत्मारामजी महाराज की सम्मति से स्वप्नों का घी साधारण में ले जाने का संघ ने ठहराव किया है, ऐसा लिखा गया है परन्तु उसमें पू. आत्मारामजो म. की सम्मति वाली बात हमको सत्य नहीं लगती। यह पूरा ठहराव संशयास्पद है। उससे प्रभावित नहीं होना चाहिये । क्योंकि पू. आत्मारामजी म. श्री ने ढुंढणी पार्वती.. बाई के प्रश्न के उत्तर में स्वप्न-पालना का घी देवद्रव्य में ले जाने का लिखा है । आ० श्री विजयवल्लभसूरिजी (उस समय मुनिश्री)
स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ]
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