Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 95
________________ अभिप्राय प्रणालियाँ आदि रद्द हो जाती हैं और पट्टक प्रमाण बन जाता है। ( विशेष बात यह है कि सर्व आचार्यों की सम्मति के बिना आप ठहराव भी नहीं कर सकते । ऐसा ठहराव करना पहली भूल है और उसे न बदलना दूसरी भूल हो रही है । ) अतः आपके वचनों से ही आपको परिवर्तन करना चाहिए। एक छोटा बालक भी समझ सके ऐसी बात है परन्तु पापभीरुता बिना समझ में नहीं आती। . अन्त में लिखा है कि 'आज कई शहरों और गांवों में अलगअलग रिवाज है।' यह भी अतिशयोक्ति है । क्योंकि भारत में जैनों की वसति वाले जितने शहर और गाँव हैं उनकी गिनती करने वर स्वन्नों के पैसे उपाश्रय, ज्ञान, या सर्वसामान्य साधारण खाते में ले जाये जाते हों ऐसे शहर या गांव पांच प्रतिशत भी मिलना मुश्किल है। . विपरीत प्ररूपणा सम्यक्त्व का नाश करने वाली है। मरोची एक वाक्य झूठा बोला तो उसका अनन्त संसार बढ़ गया। . यह हितदृष्टि से लिखा जा रहा है । अतः भूल की क्षमा मांग कर शुद्धि कर लेना कल्याणकारी है। - हमने भी यहां पर्युषण में स्वप्न-पालना निमित्त जो देवद्रव्य को नुक्सान पहुंचेगा उसको भरपाई कर दी जावेगी ऐसी व्याख्यान में जाहिरात करने के पश्चात् स्वप्न उतारने में भाग लिया था। . __ इस वर्ष राधनपुर संघ के बारह आनी भाग ने अलग स्वप्न उतार कर उसकी आय को देवद्रव्य में ले जाने का निर्णय किया है, वह प्रशंसनीय है। स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [ 85

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