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के नवम्बर १९६६ के अंक में प्रकाशित किया है उसको यहाँ उद्धृत किया जाता है। ] शास्त्रानुसारी सुविहित प्रणाली को साहसपूर्वक निडरता से प्रचारित करना आवश्यक है
( श्री शासनप्रेमी, राधनपुर ) चालू वर्ष में राधनपुर में चातुर्मासार्थ विराजमान पू. पंन्यासजी महाराज श्री कनकविजयजी गणिवर श्री ( वर्तमान में आ. विजय कनकचन्द्रसूरिजी म.) ने हिम्मत तथा दृढता के साथ राधनपुर में कितनेक वर्षों से घुसी हई स्वप्नों की आय को साधारण खाते में ले जाने को अनिष्ट और शास्त्र-सिद्धान्त विरोधी कुप्रथा का दृढ़ता के साथ विरोध करके, विजय तथा सागर गच्छ के व्यवस्थापकों तथा श्रीसंघ को शास्त्रानुसारी सुविहित प्रणाली के समर्थन में व्याख्यान के पाट पर से पू. आत्मारामजी म. के लेख, पू. आ. म. श्री विजयवल्लभसूरिजी म. के लेख, प्र. शान्तमूर्ति मुनिराजश्री हंसविजयजी म. के लेख, तथा पू. आ. म. श्री विजयसिद्धिसूरीश्वरजी म., पू. आ. म. श्री विजयनीतिसूरीश्वरजी म., पू. आ. म. श्री विजयदर्शनसूरीश्वरजी म., पू. आ. म. श्री. विजयमोहनसूरीश्वरजी म., पू. आ. म. श्री ऋद्धिसागरसूरिजी म., पू. आ. म. श्री कोर्तिसागर सूरीश्वरजी म., पू. आ. म. श्री विजयकनकसूरीश्वरजी म., पू.आ.म.श्री विजय लब्धिसूरीश्वरजी म., पू. आ. म. श्री विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. आदि लगभग तपागच्छ के सभी आचार्य भगवन्तों का पत्र-व्यवहार तथा सं. १९९० के राजनगर मुनि सम्मेलन के ठहराव आदि प्रमाण, दलील और युक्तियों से स्वप्नों को आय देवद्रव्य में जानी चाहिए, यह सचोट और निर्भयता के साथ प्रतिपादित किया।
स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ।
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