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देवद्रव्य में ही वृद्धि करने का फरमाया है । अतः वर्तमान वातावरण में उक्त कार्य में शिथिलता नहीं होनी चाहिये अन्यथा आपको आलोचना का पात्र बनना पड़ेगा। किमधिकम् ।
द. : 'वि. हिमाचलसूरि का धर्मलाभ'
पालीताणा से लि. भुवनसूरिजी का धर्मलाभ । कार्ड मिला । समाचार जाने । स्वप्नों को बोली का पैसा देवद्रव्य में ही जाना चाहिए । साधारण खाते में वह नहीं ले जाया जा सकता। पूज्य सिद्धिसूरिजी म., लब्धिसूरिजी म., नेमिसूरिजी म., सागर जी म. आदि ५०० साधुओं की मान्यता यही है । आराधना में रक्त रहना । पारणा को बोली भी देवद्रव्य में हो जाती है।
- सुदी १२ (१०)
दाठा (जि. भावनगर) श्रावण सु. १२ .. पू. पा. आ. श्री ऋद्धिसागरसूरिजी म. सा. तथा मुनिश्री मानतुंगविजयजी म. की ओर से
धर्मलाभ पूर्वक लिखने का है कि यहाँ सुखशाता है। आपका पत्र मिला । समाचार जाने । प्रश्न के उत्तर में जानिये कि चौदह स्वप्न माता को प्रभूजी के गर्भवास के कारण पूण्यबल से आते हैं इसलिए तत्सम्बन्धी वस्तु देव सम्बन्धी ही गिनी जानी चाहिए। मालादि के सम्बन्ध में भी यही बात है। प्रभुजी के दर्शन या भक्ति निमित्त संघ निकलते हैं तब संघ निकालने वाले संघपति को तीर्थमाला पहनायी जाती थी अर्थात् तीर्थमाला भी
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य