Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 66
________________ दिया है वह उनके बदले हुए मानस का परिचायक है । उनका तथा संघ के प्रमुख श्री जमनादास मोरारजी भाई का पत्र-व्यवहार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। ] शान्ताक्रुझ श्रीसंघ के प्रमुख श्री जमनादास मोरारजो जे. पी. द्वारा प्राचार्य म. श्री विजयवल्लभसूरिजी महा राजश्री को लिखे गये दो पत्र । पत्र-१ ता. २०-९-३८ सविनय वन्दनापूर्वक लिखना है कि, यहाँ का श्रीसघ सं. १९९३ के साल तक स्वप्नों के घी की बोली का ढाई रुपया प्रति मन लेता था और उससे होने वाली आय को देवद्रव्य में ले जाता था परन्तु साधारण खाते के खर्च को निभाने के लिए चालू साल में संघ ने एक ठहराव किया कि स्वप्नों के घी की बोली का भाव २॥ रु, प्रतिमन के स्थान पर ५) रु. प्रतिमन किया जाय और उसमें से सदा की भांति ढाई रुपया देवद्रव्य में ले जाया जाय और ढाई रुपया साधारण खाते के निर्वाह हेतु साधारण खाते में ले जाया जाय । संघ द्वारा किया गया यह प्रस्ताव शास्त्र के आधार से अथवा परम्परा से ठीक माना जा सकता है या नहीं ? इस विषय में आपका अभिप्राय प्रकट करने की कृपा करें। जिससे यदि उसमें परिवर्तन करते की आवश्यकता हो तो समय पर किया जा सके । सूरत, भरुच, बडौदा, खम्भात, अहमदाबाद, महेसाण, पाटण, चाणस्मा, भावनगर आदि अन्य नगरों में क्या 56 ] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य

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