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आदि के श्री संघ स्वप्नों की बोली की उपज को किस काम में लेते हैं, वह आपके ध्यान में हो तो बताने की कृषा करें।
शान्ताक्रुझ संघ के पत्र का प्रा. म. श्री विजयवल्लभ
सूरिजी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर
ता. २८-९-१९३८ वंदे श्री वीरमानंदम्
अम्बाला सीटी (पंजाब) विजयवल्लम सूरि आदि की तरफ से
श्री बम्बई शान्ताक झ मध्ये सुश्रावक सेठ जमनादास मोरारजी जोग धर्मलाभ । ता. २०-९-३८ का आपका पत्र मिला । समाचार जाने । आपने जो बात लिखा है वह प्रथा हो अर्वाचीन है तो फिर उसका उल्लेख शास्त्र में कैसे हो सकता है ? और इसीलिए इसके लिए सब जगह एक सरीखी परम्परा दृष्टि गोचर नहीं होती। जिस संघ ने पहले से अथवा आवश्यकता समझकर बाद में जो ठहराव किया हो वह संघ उस रीति से चल सकता है। आपके संघ ने मिलकर जो ठहराव किया है उसके अनुसार चलने का हमारी समझ से आपको पूरा हक है। आजकल को प्रवृत्ति अनुसार इतना अवश्य करना चाहिए कि श्री संव के रजिस्टर में यह ठहराव लिखकर उस पर संघ के प्रत्येक व्यक्ति के अथवा तो श्री संघ के आगेवानों के हस्ताक्षर करा लिये जाय। जिस रजिस्टर में यह लेख लिखा जाय उसके अंत में यह भी लिखना चाहिए कि कालान्तर में आवश्यकता होने
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य