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परिपाटी है ? उन नगरों के श्रीसंघ किस प्रकार स्वप्नों के घी की बोलो की उपज का उपयोग करते है ? इस विषय में आपका अनुभव बताने की कृपा करे !
श्रीसंघ के उक्त ठहराव के अनुसार स्वप्नों की बोली के घी की उपज श्री देवद्रव्य और साधारण खाते में ले जायी जाय तो श्रीसंघ को दोष लगता है या नहीं ? इस विषय में आपका अभिप्राय बताने की कृपा करें ।
संघ - प्रमुख
जमनादास मोरारजी का सविनय वंदन !
( ४ )
( ऊपर के पत्र का शीघ्र उत्तर न आने पर शांताक्र ुज संघ ने दूसरा पत्र लिखा, जो इस प्रकार है । )
'शान्ताक्रुज संघ का दूसरा पत्र
सविनय वन्दना के साथ लिखना है कि यहां के संघ में स्वप्नों की बोली के घी का भाव २ ।। रु. प्रति मन गत वर्ष तक चल रहा था और वह आय देवद्रव्य में ले जाई जाती थी परन्तु साधारण खाते के खर्च को निभाने के लिए यहाँ के संघ ने एक ठहराव किया कि मूल के २ 11 ) रु. आवे वे हमेशा की तरह देवद्रव्य में ले जाये जावें ओर २||) रुपया जो अधिक आवे वे 'साधारण खाते में ले जाये जावें + इस प्रकार किया गया ठहराव शास्त्र के आधार से बराबर है या नहीं ? इस विषय में आपका अभिप्राय बतलाने की कृपा करें । सुरत, भरूच, बड़ौदा, खंभात, अहमदाबाद, महेसाणा, पाटण, चाणस्मा, भावनगर
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
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