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रूप से कहते हैं कि 'मेरे सुनने में कभी नहीं आया कि स्वप्नों का द्रव्य उपाश्रय में खर्च करने की सम्मति दी हो ।'
इससे यह स्पष्ट है कि स्वप्न द्रव्य की आय कदापि उपाश्रय में प्रयुक्त नहीं की जा सकती । आज इस पत्र को लिखे कितने हो वर्ष हो चुके हैं उससे इतना तो समझा जा सकता है कि स्वयं उस समय अर्थात् आज से ६४ वर्ष पहले भी पूज्यपाद आ. म. श्री विजयानन्दमूरिजी महाराजश्री के श्रमण - समुदाय में. अरे स्वयं पू. आ. म. श्री विजयवल्लभसूरिजी महाराजश्री के समुदाय में भी स्वप्नद्रव्य की उपज देवद्रव्य में हो जाती थी । यह शास्त्रानुसारी और सुविहित परम्परामान्य प्रणाली है जिसे पू. विद्वान् मुनिराजश्री चतुरविजयजी म. जैसे साहित्यकार और अनेक शास्त्र-ग्रन्थों के सम्पादक-संशोधक तथा पू. आ. म. श्री विजयवल्लभसूरि महाराजश्री के आज्ञावर्ती भी मानते थे और उसके अनुसार प्रवृत्ति करते थे ।
नीचे प्रकाशित किया जाने वाला उनका यह पत्र हमें इस बात की प्रोति कराता है । ]
(२)
पू. पाद श्रात्मारामजी महाराज का श्रमण समुदाय भी स्वप्नों की प्राय को देवद्रव्य में ले जाने का पक्षधर था श्रौर है। एक महत्वपूर्ण पत्र व्यवहार :
ता. ६-७-१७
बम्बई से लि. मुनि चतुरविजयजी की तरफ से -
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
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