________________
इस सम्बन्ध में लगभग सब आचार्यों का एक ही अभिप्राय है जो शान्ताकु झ संघ की तरफ से पुछाये गये प्रश्न के उत्तर रूप में 'कल्याण' मासिक में प्रसिद्ध भी हआ है। 'सिक्रचक्र पाक्षिक में पू. स्व. आगमोद्धारक श्री सागरजी महाराजा ने भी देवद्रव्य में इस राशि को ले जाना बताया है।
अहमदाबाद, सूरत, खम्भात, पाटन, महेसाणा, पालीताना आदि बड़े संघ परम्परा से इस राशि को देवद्रव्य में ले जाते हैं। केवल बम्बई का यह चेपो रोग कुछ स्थानों पर फैला हो, यह संभावित है। परन्तु बम्बई में भी कई स्थानों पर आठ आनो या दशआनी या अमुक भाग साधारण खाते में ले जाया जाता है परन्तु वह देवद्रव्य मन्दिर के साधारण अर्थात् पूजारी, मन्दिर की रक्षा के लिए भैया, मन्दिर का काम करने वाले नौकर के वेतन आदि में काम लिया जाता है न कि साधारण अर्थात् सब जगह काम में लिया जा सके इस अर्थ में । इस संबंध में जिसको समझना हो, प्रभु को आज्ञानुसार धर्म पालना हो, व्यवहार करना हो तो प्रत्येक शंका का समाधान योग्य रीति से किया जावेगा।
. (२) उपधान के लिए श्रमण संघ के सम्मेलन का स्पष्ट ठहराव है कि वह देवद्रव्य में ले जाया जाय । इसमें कोई शंका नहीं है सब जगह ऐसी ही प्रवृत्ति है । बम्बई में दो वर्ष से ठाणा ओर घाटकोपर में वैसा परिवर्तन करने का प्रयत्न किया गया परन्तु वहां भी संघ में मतभेद है अतएव उसे निर्णय नहीं कहा जा सकता।
तात्पर्य यह है कि उक्त दोनों प्रकार की आय को देवद्रव्य में ले जाना शास्त्र सम्मत एवं परंपरा से मान्य है । यदि कोई समुदाय अपनी मति- कल्पना से इच्छानुसार प्रवृत्ति करे तो वह
28 ]
[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य