Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 12
________________ की बोली में इस प्रकार साधारण खाता की आय नहीं मिलाई जा सकती है । इसमें हमारा स्पष्ट विरोध है।' उन्होंने यह भी कहा कि-'संघ को इस विषय में निर्णय लेने के पहले जैन संघ के विराजमान एवं विद्यमान पू. सुविहित शासनमान्य आचार्य-भगवन्तों से परामर्श करना चाहिए और उसके बाद ही उनकी सम्मति से हो इस विषय में निर्णय लिया जाना चाहिए।' अतः तत्कालीन शान्ताकु झ संघ के प्रमुख सुश्रावक जमनादास मोरारजी जे. पी. ने इस बात को स्वीकार करके समस्त भारत के जैन श्वे. मू. पू. संघ में, उसमें भी तपागच्छ श्री संघ में विद्यमान पू. आचार्य भगवन्तों को इस विषय में पत्र लिखे । वे पत्र तथा उनके जो प्रत्युत्तर प्राप्त हुए, वह सब साहित्य वि. सं. १९९५ के मेरे लाल बाग जैन उपाश्रय के चातुर्मास में मुझे सुश्रावक नेमिदास अभेचन्द मांगरोल निवासी के माध्यम से प्राप्त हआ। उसे मैंने पहले 'कल्याण' मासिक में प्रकाशनार्थ दिया और आज फिर से अनेक सुश्रावकों की भावना को स्वीकार कर पुस्तक के रूप में उसे प्रकाशित किया जा रहा है। . (१) शान्ताक्रुझ संघ की ओर से लिखा गया प्रथम पत्र : 'सविनय निवेदन है कि यहां का संघ सं. १९९३ के साल तक स्वप्नों के घी की बोली ढाई रुपया प्रति मन से लेता रहा है तथा उसकी आय को देव-द्रव्य के रूप में माना जाता था। परन्तु साधारण खाते की पूर्ति के लिये चालू वर्ष में एक प्रस्ताव 2] . [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य

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