Book Title: Swapnadravya Devdravya Hi Hai
Author(s): Kanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
Publisher: Vishvamangal Prakashan Mandir

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Page 11
________________ प्रकरण [१] पू. पाद सुविहित प्राचार्यादि मुनि भगवन्तों का शास्त्रानुसारी सचोट मार्गदर्शन स्वप्नों को घो की बोली का मूल्य बढ़ाकर क्या वह वृद्धि साधारण खाते में ले जाई जा सकती हैं ? शास्त्रानुसारी महत्त्वपूर्ण निर्णय समस्त भारतवर्ष के श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघों को सदा के लिए मार्गदर्शन प्राप्त हो, इस शुभ उद्देश्य से एक महत्त्वपूर्ण पत्र-व्यवहार यहाँ प्रसिद्ध किया जा रहा है । . उसकी पूर्व भूमिका इस प्रकार है । वि. सं. १९९४ में शान्ताक झ (बम्बई) में पू. पाद सिद्धान्त महोदधि गच्छाधिपति, आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजश्री की आज्ञा से पूज्य मुनिवर श्री ३८-३ पर्यषणा पर्व की आराधना के लिए श्रीसंघ की विनति से पधारे थे । उस समय संघ के कई भाइयों की भावना साधारण खाते के खर्च को पूरा करने के लिए स्वप्नों की बोली में घी के भाव बढ़ाकर उसे साधारण खाते में ले जाने की हुई। यह भावना जब संघ में प्रस्ताव के रूप में रखी गई तो उस चातुर्मास में श्री पर्युषणा पर्व की आराधना कराने श्रीसंघ की विनति से पधारे हुए पू. मुनि-महाराजाओं ने उसका दृढ़ता से विरोध करते हुए बताया कि ऐसा करना उचित नहीं है । यह न तो शास्त्रानुसारो है और न व्यावहारिक ही । स्वप्नों

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